Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 350
________________ aaree सुमकिट्टी दिज्जमानपदेसपरूवणा ३१७ कोरमाणीसु कि कारणं पृथ्वपरुविदत्थविसये विसेसणिष्णयहे उत्तणा सयभूदो त्ति काढूण, तम्हा हम सांप इय किट्टी विसयपदेस संकमपरूवणापसंगेण बादर सांप। इय किट्टीविसओ वि पदेससंकमबहुअ वही परुविदो त्ति एसो एत्य सुत्तत्यसन्भावो । एवमेदं पदेससंकमध्याबहुवर्वािह जाणाविय संपहि सुमसांप इयकिट्टीकरणद्धाविसयं परूवणाविसेसं पुणो वि परूवेमाणो सुत्तपबंधमुत्तरमाढवेइ– * सुहुमसांपराइय किट्टीसु पढमसमये दिज्जदि पदेसगं थोवं । * विदियसमये असंखेज्जगुणं जाव चरिमसमयादो ति ताव असंखेज्जगुणं । $ ७९३ समये समये अनंतगुणवडिदेहि परिणार्मेह वडमाणो एसो पडिसमयमसंखेज्जगुणं पदेसग्ग मोक ड्डियूण जाव बादरसां पराइयचरिमसमयो त्ति ताव सुहुमसांपराइप किट्टी सरूवेण परिणमेदित्ति भणिदं होदि । * एदेण कमेण लोभस्स विदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमट्ठिदी तिस्से पढमदिए आवलिया समयाहिया सेसा तितम्हि समये चरिमसमयबादरसपराइओ । $ ७९४. गयत्थमेदं सुत्तं । एवं चरिमसमयबादर सांपरराइयभावे वट्टमाणस्स तक्कालभाविओ जो परूवणा विसेसो तण्णिष्णयकरणट्टमुवरिमो सुत्तपबंधो जानेमें पहले कहे गये अर्थके विषय में किस कारणसे विशेष निर्णय में हेतुरूपसे आश्रयभूत है ऐसा समझकर उससे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिविषयक प्रदेशसंक्रमकी प्ररूपणा के प्रसंगसे बादर साम्परायिक कृष्टिविषयक प्रदेशसंक्रम अल्पबहुत्वविधि कही गयी है यह यहाँपर इस सूत्र का समुच्चयरूप अर्थ है । इस प्रकार इस प्रदेशसंक्रम अल्पबहुत्व विधिका ज्ञान कराकर अब सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकरण कालविषयक प्ररूपणाविशेषका फिर भी प्ररूपण करते हुए आगेके सूत्रप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * प्रथम समयसम्बन्धी सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों में अल्प प्रदेशपुंजको देता है । * दूसरे समयसम्बन्धी सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें अन्तिम समयके प्राप्त होने तक असंख्यातगुणे प्रदेश पुंजको देता है । $ ७९३. समय-समय में अनन्तगुणवृद्धिरूप परिणामोंके द्वारा वृद्धिको प्राप्त होता हुआ वह क्षपक जीव प्रतिसमय असंख्यातगुणे प्रदेशपुंजका अपकर्षण करके बादर साम्परायिकके अन्तिम समय तक सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिरूपसे परिणमाता है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है । * इस क्रमसे लोभकी दूसरी कृष्टिका वेदन करनेवाले क्षपक जीवके उसकी जो प्रथम स्थिति होती है उसकी एक समय अधिक जब एक आवलि शेष रह जाती है उस समय जीव अन्तिम समयवर्ती बादरसाम्परायिक होता है । $ ७९४. यह सूत्र गतार्थ है । इस प्रकार अन्तिम समयवर्ती बादरसाम्परायिकभाव में विद्यमान इस क्षपक जीवके तत्काल होनेवाला जो प्ररूपणा भेद है उसका निर्णय करनेके लिये आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है

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