Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 340
________________ खवगसेढीए सुहुमसांपरायियविसयकपरूवणा ३०७ * जहणियाए सुहुमसांपराइयकिट्टीए पदेसग्गं बहुगं तत्तो अणंतभागहीणं जाव चरिमसुहुमसांपराइयकिट्टि त्ति । $ ७७३. सुगमं। * तदो जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं । $ ७७४. किं कारणं ? बादरकिट्टीहितो पदेसग्गस्स संखेज्जदिभागं चेव ओकड्डियूण सहुमकिट्टीओ णिवत्तेमाणस्स तत्थ दिस्समाणयपदेसग्गादो बादरकिट्टीस दिस्समाणपदेसग्गस्सासंखेज्ज. गुणत्तसिद्धोए बाहाणुवलंभादो। एतो उवरि बादरसांपराइयकिट्टीसु अणंतरोबणिधाए विसेसहीण. मणंतभागेण दिस्समाणपदेसग्गं दटुवं; तत्थ पयारंतरासंभवादो। एसा च दिस्समाणपदेसग्गस्स सेढिपरूवणा सुहुमसांपराइयकिट्टोकारगस्स पढमसमयप्पहुडि जाव चरिमसमयबादरसांपराइओ त्ति ताव अप्पडिसिद्धा वटुब्वा चि पदुप्पाएमाणो सुत्तमुत्तरं भगइ * एसा सेढिपस्वणा जाव चरिमसमयबादरसांपराइओ त्ति । 5 ७७५. गयत्थमेदं सुत्तं। संपहि सुहुमसांपराइयगुणढाणं पविठुस्स पढमसमये सुहुमकिट्टीसु दिस्समाणपदेसग्गस्स सेढीपरूवणा केरिसी होदि ति जादारेषस्स सिस्सस्स णिरारेगीकरण?मुत्तरसुत्तमोइण्णं * पढमसमयसुहुमसांपराइयस्स वि किट्टीसु दिस्समाणपदेसगस्स सा चेव सेढिपरूवणा। * जघन्य सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें दिखनेदाला प्रदेशपुंज बहुत है उससे आगे सूक्ष्मसाम्परायिकको अन्तिम कृष्टिके प्राप्त होने तक दिखनेवाला प्रदेशपुंज अनन्त भागहीन होता है। 5७७३. यह सूत्र सुगम है। * तनदन्तर जघन्य बावर साम्परायिककृष्टिमें विखनेवाला प्रदेशज असंख्यातगुणा होन है। ६७७४. क्योंकि बादर कृष्टिसे प्रदेशपुंजके असंख्यातवें भागका ही अपकर्षण करके सूक्ष्म साम्परायिक कृष्टियोंकी रचना करनेवालेके वहां दिखनेवाले प्रदेशपुंजसे बादर कृष्टियों में दिखनेवाले प्रदेशपंजके असंख्यातगुणेकी सिद्धि में बाधा नहीं पायी जाती। इसके आगे बादरसाम्परायिक कृष्टियों में अनन्तरोपनिधाको अपेक्षा अनन्तभागरूपसे विशेष होन दिखनेवाला प्रदेशपंज जानना चाहिए, क्योंकि उसमें दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है। और वह दिखनेवाले प्रदेशपंजकी श्रेणिप्ररूपणा सूक्ष्मसाम्यरायिकके अन्तिम समय तक बिना रुकावटके जाननी चाहिये इस बातका कथन करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं श्रेणीप्ररूपणा बादरसाम्परायिकके अन्तिम समय तक जाननी चाहिए। ७७५. यह सूत्र गतार्थ है। अब सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थान में प्रवेश करनेवाले जीवके प्रथम समयमें सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों में दिखनेवाले प्रदेशजकी श्रेणिप्ररूपणा कैसी होती है ऐसी जिसे आशंका हुई है ऐसे शिष्यको आशंकारहित करने के लिये आगेका सूत्र आया है * प्रथम समयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकके भी कृष्टियों में दिखनेवाले प्रवेशपूलको वही णिप्ररूपणा होती है।

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