Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
३०६
जयघवला सहिदे कसायपाहुडे
इमं विस मोत्तूण सेसेसु सब्वेसु ट्ठाणेसु ुव्व किट्टीदो पुण्य किट्टि पडिवज्जमाणस्स अनंतभागहीणो चेव पदेसविण्णासो दट्ठन्त्रो, तत्थ संभवंत राणुत्रलंभादो त्ति वृत्तं होइ । एवमेदेग बीजपदेण संधीओ जाणिदूण दव्वं जाव चरिमसमय सुहुमसां । इयकिट्टि ति । चरिमादो सुहुमसां पराइय किट्टीदो जहणियाए बादरसांप इयकिट्टीए दिज्जमानपदेसग्गगमसंखेज्जगुणहीणं होदि । कारणं पुण्वं व वत्तब्वं । एवमेसो कमो ताव णेदव्वो जाव चरिमसमयबादरसां पराइयो त्ति । संपहि इममेव अत्यविसेसं फुडीकरेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
* जो विदियसमये दिज्जमाणगस्स पदेसग्गस्स विधी सो चेव विधी सेसेसु विसमयेसु जाव चरिमसमयबादरसपराइयो त्ति ।
$ ७७०. गयत्थमेदं सुतं । एवमेत्तिएण पबंधेण सुहुमसांपराइयकिट्टीसु दिज्जमानयस्स पवेसग्गस्स सेढिपरूवणं समाजिय संपहि तत्थेव पढमसमय पहुडि दिस्समाणपदेसग्गमेवेण सरूवेण चिट्ठदित्ति जाणावणट्ठमुवरिमं पबंधमाढवेह
* सुहुमसांपराइय किट्टीकारगस्स किट्टीसु दिस्समानपदेसग्गस्स सेढिपरूवणं ।
.६ ७७१. सुगमं ।
* तं जहा ।
१७७२. सुगमं ।
-
होता है, पुन: इस विषय को छोड़कर शेष सम्पूर्ण स्थानों में पूर्व कृष्टिसे पूर्व कृष्टिको प्राप्त होनेवाले अनन्तभागहीन ही प्रदेशपुंजविन्यास जानना चाहिए, क्योंकि वहाँपर दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार इस बीज पदके द्वारा सन्धियोंको जानकर अन्तिम समयवर्ती कृष्टि प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। पुनः अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिसे जघन्य बादरसाम्परायिक कृष्टिमें दिया जानेवाला प्रदेशपुंज असंख्यातगुणा हीन होता है । कारणका कथन पहले के समान करना चाहिए। इस प्रकार यह क्रम बादरसाम्परायिकके अन्तिम समय तक जाना चाहिए | अब इसी अर्थविशेषको स्पष्ट करते हुए आगे के सूत्रको कहते हैं -
* जो दूसरे समय में दिये जानेवाले प्रदेशपुंजकी विधि है वही विधि बादरसाम्परायिक के अन्तिम समयके प्राप्त होने तक सब समयों में जाननी चाहिए।
६ ७७० यह सूत्र गतार्थं है । इस प्रकार इतने प्रबन्ध द्वारा सूक्ष्मसाम्परायिक सम्बन्धी कृष्टियों में दिये जानेवाले प्रदेशपुंजकी श्रेणिप्ररूपणा करके अब वहींपर प्रथम समयसे लेकर दिखनेवाला प्रदेशपुंज इस रूपसे अवस्थित रहता है इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगे प्रबन्धको आरम्भ करते हैं.
* आगे सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिकारकके कृष्टियों में दिखनेवाले प्रदेशपुंजको श्रेणिप्ररूपणा करते हैं ।
७७१. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे ।
३७७२. यह सूत्र सुगम है ।