Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 334
________________ taarate किट्टी अप्पाबहुअपह्वेवणां * सुहुमसां पराइय किट्टीसु पढमसमये पदेसग्गं दिज्जदि तं थोवं । ६ ७५३. सुगमं । * विदियसमये असंखेज्जगुणं । ७५४. सुगमं । * एवं जाव चरिमसमयादो त्ति असंखेज्जगुणं । ७५५. सुगममेदं वित्तं । एवं च ओकट्टिज्जमाण पर्देसग्गस्स सुहुमसांपराइयकिट्टीसु णिसेगविसेसजाणावणट्टमुवरिमं सुत्तपबंधमाह ३०१ * सुहुमसांपराइय किट्टीसु पढमसमये दिजमाणगस्स पदेसग्गस्स सेढिपरूवणं वसामो । ६ ७५६. सुगमं । * तं जहा । ६ ७५७. सुगमं । * जहण्णियाए किट्टीए पदेसग्गं बहुअं । विदियाए विसेसहीणमणंतभागेण । त दिया विसेसहीणं । एवमणंतरोवणिधाए गंतूण चरिमाए सुहुमसांपराइय किट्टीए पदेसग्गं विससहीणं । * प्रथम समय में सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंमें जो प्रदेशपुंज दिया जाता है वह थोड़ा है । $ ७५३. यह सूत्र सुगम है । * दूसरे समय में असंख्यातगुणा प्रदेशपुंज दिया जाता है। ६ ७५४. यह सूत्र सुगम है । इस प्रकार अन्तिम समयके प्राप्त होने तक प्रत्येक समयमें असंख्यातगुणा प्रवेशपुंज दिया जाता है । १७५५. यह सूत्र भी सुगम है। इस प्रकार अपवर्त्यमान प्रदेशपुंजके सूक्ष्मसाम्परायिक कष्टियों में निषेकविशेषका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको कहते हैं * सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों में प्रथम समयमें दिये जानेवाले प्रवेशपुंजको श्र ेणिप्ररूपणाको बतलायेंगे । $ ७५६. यह सूत्र सुगम है । * वह जैसे । ६ ७५७. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य कृष्टिमें प्रवेशपुंज बहुत हैं। दूसरी कृष्टिमें अनन्तवें भाग विशेष हीन हैं। तीसरी कृष्टिमें विशेष हीन हैं। इस प्रकार अनन्तरोपनिधाके क्रमसे जाकर अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें प्रवेशपुंज विशेष होन हैं ।

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