Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ २९६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे यव्वं सव्वजण्णबादरकिट्टीवो वि हेढा सुठ्ठ अणंतगुणहाणोए ओहट्टिदण सव्वुक्कस्ससुहुमसांपराइय. किट्टीए समवट्ठाणणियमदंसणादो। 5७३९. संपहि एदस्सेवत्थस्स फुडोकरणट्ठमुवरिमो सत्तपबंधो* तासिं सुहुमसांपरोइयकिट्टीणं कम्हि ठाणं । $ ७४०. किं विविय तदियबादरसांपराइयकमेण हेढा पादेक्कमेदाहिमवढाणं होवि आहो तदियसंगहकिट्टीदो हेट्ठा चेद तदवट्ठाणणियमो त्ति पुच्छा कदा होदि । * तासिं ठाणं लोभस तदियाए संगहकिट्टीए हेदो । 5७४१. तासि सुहुमसांपराइयकिट्टीणं ठाणमवढाणं णियमा तदियबादरसांपराइयकिट्टीए हेढा दृढव्वं; तत्तो अणंतगुणहाणीए अपरिणदाए सहुमसांपराइयकिट्टित्तविरोहादो ति एसो एक्स्स सत्तस्स भावत्थो। संपहि एवमवहारिदद्वाणविसेसाणं सहुमसांपराइयकिट्रोणं परवणाणुगमे कीरमाणे तत्थ ताव सुहुमसांपराइयकिट्टीणमायामविसेसस्स पदुप्पायणटुं तल्लक्खणविसेसावहारणटुं च सुत्तपबंधमुत्तरमाढवेइ * जारिसी कोहस्स पढमसंगहकिट्टी तारिसी एसा सुहुमसांपराइयकिट्टी। समाधान-बादरसाम्परायिक कृष्टियोंसे अनन्तगुणहानिरूपसे परिणमनकर लोभ संज्वलनके अनुभागके अवस्थानको सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका लक्षण जानना चाहिए, क्योंकि सबसे जघन्य बादर कृष्टिसे भी नीचे अच्छी तरह अनन्तगुणहानिरूपसे घटकर सर्वोत्कृष्ट सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिके अवस्थानका नियम देखा जाता है। ७३९. अब इसी अर्थके स्पष्टीकरण करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया हैके सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका कहाँ स्थान है ? 5७४०. क्या द्वितीय तृतीय बादर साम्परायिकके क्रमसे प्रत्येक इनके नीचे अवस्थान है या तृतीय संग्रहकृष्टिसे नीचे हो उनके अवस्थानका नियम है, उक्त सूत्र द्वारा यह पृच्छा की गयी है। ॐ उन सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका लोभको तीसरो संग्रहकृष्टिसे नोचे स्थान है। ६७४१. उन सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंका स्थान अर्थात् अवस्थान नियमसे तीसरी बादरसाम्परायिक कृष्टिसे नीचे जानना चाहिए, क्योंकि उससे. अनन्तगुणहानिरूपसे परिणत नहीं होनेपर सूक्ष्मसाम्परायिककृष्टिपनेका विरोध आता है यह इस सूत्रका भावाथ है। अब इस प्रकार जिनके उत्थानविशेषोंका अवधारण किया है ऐसी सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंको प्ररूपणाका अनुभव करनेपर वहाँपर सर्वप्रथम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंके आयामविशेषका कथन करनेके लिए और उनके लक्षणविशेषका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रप्रबन्धको आरम्भ करते हैं___* जिस प्रकारको कोषको प्रथम संग्रहकृष्टि है उसी प्रकारको यह सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टि होती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390