Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
२९४
जयधवासहिदे कसायपाहुरे दूण अंतोमुहत्तपमाणेणेदम्मि विसये पयवि त्ति वुत्तं होई। गवरि एत्थतणढिविबंधादो दिदि संतकम्मं संखेज्जगुणमिदि वटव्वं ।
* तिण्हं घादिकम्माणं डिदिबंधो दिवसपुधत्तं ।
६७३३. पुठिवल्लसंधिविसये मासपुषत्तमेतो घाविकम्माणं दिविबंधो तत्तो कमेण परिहोय. माणो दिवसपुषत्तमेत्तो एत्थ जादो ति वुत्तं होइ।
* सेसाणं कम्माणं वासपुधत्तं ।।
६७३४. पुग्विल्लसंधिविसये तप्पाओग्गसंखेज्जवस्सपमाणो होतो तिहमघादिकम्माणे ट्रिविबंधो वासपुधत्तमेत्तो एहि संजावो त्ति भणिवं होदि।
* घादिकम्माणं ठिदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । ६७३५. सुगम। * सेसाणं कम्माणं असंखेज्जाणि वस्साणि । ६ ७३६. सुगममेदं पि सुत्तं।
* तत्तो से काले लोभस्स विदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकट्टियूण पढमहिदि करेदि।
पुनः उससे यथाक्रम घटकर इस स्थानमें वह अन्तर्मुहूर्तप्रमाण प्रवृत्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इतनी विशेषता है कि यहाँके स्थितिबन्धसे स्थितिसत्कर्म संख्यातगुणा होता है ऐसा जानना चाहिए।
के इन घातिकोका स्थितिबन्ध विवसपृथक्त्वप्रमाण होता है।
६७३३. पूर्वोक्त सन्धिमें घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध मासपृथक्त्वप्रमाण था उससे क्रमसे घटकर इस स्थानपर दिवसपृथक्त्वप्रमाण हो गया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* तथा शेष कर्मोका स्थितिबन्ध वर्षपृथक्त्वप्रमाण होता है।
६७३४. पूर्वोक्त सन्धिमें तत्प्रायोग्य संख्यात वर्षप्रमाण होकर तीनों अघातिकर्मोका स्थितिबन्ध इस समय वर्षपृथक्त्वप्रमाण हो गया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* घातिकर्मोका स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता है। ६७३५. यह सूत्र सुगम है। * तथा शेष कोका स्थितिसत्कर्म असंख्यात वर्षप्रमाण होता है। ६७३६. यह सूत्र भी सुगम है।
ॐ तदनन्तर लोभको दूसरो कृष्टि से प्रवेशपुंजका अपकर्षण करके प्रथम स्थितिको करता है।