Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 306
________________ खवगसेढोए संकममाणपदेसग्गस्स विही २७३ १६८१. कोहतदिय संगह किट्टीए पदेसग्गं सेसासेससंगहकिट्टीपरिहारेण माणस्स पढमसंगहकिट्टीए चेव संकमदित्ति घेत्तव्वं, तत्थ पयारंतरासंभवादो । एसो च अधापवत्तसंकमो बज्झमाणकिट्टी सरूवेण बज्झमाणाबज्झमाण किट्टीणमधापवत्तेणेव संकंतिणियमदंसणादो । * माणस्स पढमादो किट्टीदो माणस्स विदियं तदियं मायाए पढमं च गच्छदि । $ ६८२. एत्थ वि अपणो विदिय-तदियसंगहकिट्टीसु ओकडुणासंकमो, मायाए पढमसंगहकिट्टीए अधापवत्तसंकमो ति णिच्छेयव्वं । सेसं सुगमं । माणस्स विदियकिट्टीदो माणस्स तदियं च मायाए पढमं च गच्छदि । * माणस्स तदियकिट्टीदो मायाए पढमं गच्छदि । * मायाए पढमादो पदेसग्गं मायाए विदियं तदियं च लोभस्स पढमकिट्टि च गच्छदि । * मायाए विदियादो किट्टीदो पदेसग्गं मायाए तदियं लोभस्स पढमं च गच्छदि । * मायाए तदियादो किट्टीदो पदेसग्गं लोभस्स पढमं गच्छदि । ६ ६८१. क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिका प्रदेशपुंज शेष समस्त संग्रह कृष्टियोंका परिहार करके मानकी प्रथम संग्रह कृष्टि में ही संक्रमित होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि उसमें दूसरा प्रकार सम्भव नहीं है । और यह अधःप्रवृत्त संक्रम है, क्योंकि बध्यमान और अबध्यमान कृष्टियोंके अधःप्रवृत्त संक्रमरूपसे ही संक्रमका नियम देखा जाता है । * मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिसे प्रदेशपुंज मानकी दूसरी और तीसरी संग्रहकृष्टिको तथा मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है | ६६८२. यहाँ पर भी अपनी दूसरी और तीसरो संग्रहकृष्टियों में अपकर्षण संक्रम और मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिमें अधःप्रवृत्त संक्रम प्रवृत्त होता है ऐसा निश्चय करना चाहिए । शेष कथन - सुगम है । * मानकी दूसरी संग्रहकृष्टिसे प्रवेशपुंज मानकी तीसरी संग्रहकृष्टिको और मायाकी प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है। * मानको तीसरी संग्रहकृष्टिसे प्रवेशपंज मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है । * मायाको प्रथम संग्रहकृष्टिसे प्रदेशपंज मायाकी दूसरी और तीसरी संग्रहकृष्टिको और लोकी प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है । मायाकी दूसरी संग्रहकृष्टिसे प्रवेशपुंज मायाकी तीसरी संग्रहकृष्टिको और लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है। * मायाकी तीसरी संग्रहकृष्टिसे प्रवेशपुंज लोभकी प्रथम संग्रहकृष्टिको प्राप्त होता है। ३५

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