Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 312
________________ खवगसेढोए आगाल-पडिआगालणियमपरूवणा २७९ * कोहस्स विदियकिट्टि वेदयमाणस जा पढमद्विदी तिस्से पढमद्विदीए आवलियपडिआवलियाए सेसाए आगाल-पडियागालो वोच्छिण्णो। ६६९८. जइ वि एत्थ किट्टीकरणद्धपारंभप्पहुडि मोहणीयस्स उक्कड्डणाभावेण पढमट्टिवीदो विदियटिदिम्मि पदेससंगरो णस्थि तो वि विदियटिदीदो पढमदिदीए ओकडिज्जमाणपदेसग्गस्स एण्हिमणागमणं पेक्खियणागालपडिआगालवोंच्छेदो णिहिदो । एवमागालपडिआगालवोच्छेदं कादूण पुणो वि समयूणावलियमेत्तकाले गालिदे पढमट्टिदी समयाहियावलियमेत्ती सेसा होदि ताधे कोहसंजलणस्स जहणिया टिदिउदीरणा, ताधे चेव विदियसंगहकिट्टीए चरिमसमयवेदगभावेण परिणमदि त्ति जाणावणफलो उत्तरसुत्तारंभो। * तिस्से चेव पढमट्ठिदीए समयाहियाए आवलियाए सेसाए ताहे कोहस्स विदियकिट्टीए चरिमसमयवेदगो। ६९९. गयत्थमेदं सुत्तं । एवं च कोहविदियसंगहकिट्टीए चरिमसमयवेवगभावेण पयट्टमाणस्स तक्कालभाविओ जो परूवणाभेदो तण्णिद्धारणद्वमुत्तरो सुत्तपबंधो * ताधे संजलणाणं द्विदिबंधो बेमासा वीसं च दिवसा देसूणा । ६७००. एत्थ पुव्वुत्तसंधिविसदिदिबंधादो टिदिबंधपरिहाणी पुव्वं व तेरासियकमेणाणेयठवा। * क्रोषसंज्वलनकी दूसरी कृष्टिका वेदन करनेवालेके जो प्रथम स्थिति होती है उस प्रथम स्थितिको आवलि और प्रतिमावलिके शेष रहनेपर आगाल और प्रतिआगालको व्युच्छित्ति हो जाती है। ६६९८. यद्यपि यहाँपर कृष्टिकरण कालके प्रारम्भ होनेसे लेकर मोहनीय कर्मका प्रथम स्थितिमें से उत्कर्षण होकर द्वितीय स्थितिमें प्रदेश संचार नहीं होता तो भी द्वितीय स्थितिमें से प्रथम स्थिति में अपकृष्यमाण प्रदेशपुंजका नहीं आना देखकर इस समय आगाल और प्रत्यागालकी व्यच्छित्ति कही है। इस प्रकार आगाल और प्रत्यागालकी व्युच्छित्ति करके फिर भी एक समय कम आवलि प्रमाण कालके गालित होनेपर प्रथम स्थिति एक समय अधिक आवलिप्रमाण शेष रहती है। उस समय क्रोधसंज्वलनको जघन्य स्थिति उदीरणा होती है तथा उसी सम संग्रह कृष्टिका अन्तिम समयमें वेदकरूपसे परिणमन होता है इस बातके ज्ञान करानेके फलस्वरूप आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं * उसी प्रथम स्थितिके एक समय अधिक एक आवलिमात्र शेष रहनेपर उस समय क्षपक जीव क्रोधको द्वितीय संग्रह कृष्टिका अन्तिम समयवर्ती वेदक होता है। ६६९९. यह सूत्र गतार्थ है। इस प्रकार क्रोधको दूसरी संग्रह कृष्टिका अन्तिम समयमें वेदकरूपसे प्रवर्तमान क्षपकके तत्कालभावो जो प्ररूपणाभेद है उसका निर्धारण करने के लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है * उस समय संज्वलनोंका स्थितिबन्ध दो महीना और कुछ कम बोस दिन होता है। ६७.०. यहाँपर पूर्वोक्त सन्धिविषयक स्थितिबन्धसे स्थितिबन्धको हानि पहलेके समान राशिक क्रमसे ले आनो चाहिए।

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