Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढोए माणवेदकपरूवणा
२८९ 5७२४. माणपढमसंगहकिट्टिमहिकिच्च पुव्वं परविदो जो विही तेणेव विहिणा अणूणाहियेण संजुत्तो एसो सगकिट्टोवेदगद्धाए चरिमसमयसंपत्तो। ताधे अप्पणो पढमदिदी समयाहियावलियमेत्ती, सेसासेसपढमहिदीए सगवेदगकालभंतरे णिज्जिण्णत्तादो त्ति एसो एत्थ सुत्तत्थविणिण्णओ। संपहि एदम्मि उद्देसे वट्टमाणस्सेवस्स तिण्हं संजलणाणं ठिदिबंध-ट्ठिविसंतकम्मपमाणावहारण?मुत्तरो सुत्तपबंधो
* ताघे संजलणाणं द्विदिबंधो मासो दस च दिवसा देसूणा ।
5७२५. पुश्वुत्तसंधिविसयटिदिबंधादो जहाकममतोमुहत्ताहियवसदिवसपरिहाणिवसेण पयददिविबंधसिद्धीए णिव्विसंवादमुवलंभादो।
* संतकम्मं दो वस्साणि अट्ठ च मासा देसूणा ।
६७२६. एत्थ वि दिविसंतपरिहाणी सादिरेयअट्टमासमेता तेरासियकमेण साहेयव्या। सेसं सुगमं।
* से काले माणतदियकिट्टीदो पदेसग्गमोकड्डियूण पढमट्टिदि करेदि ।
* तेणेव विहिणा संपत्तो माणस्स तदियकिट्टि वेदयमाणस्स जा पढमद्विदी तिस्से आवलिया समयाहियमेती सेसा ति ।
* ताघे माणस्स चरिमसमयवेदगो ।
६७२४. मानकी प्रथम संग्रहकृष्टिको अधिकृत करके पहले जो विधि कह आये हैं न्यूनाधिकतासे रहित उसी विधिसे संयुक्त होकर यह क्षपक जीव अपनी कृष्टिवेदक कालके अन्तिम समयको प्राप्त होता है । उस समय अपनी प्रथम स्थिति एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण शेष रहती है, क्योंकि शेष सम्पूर्ण प्रथम स्थिति अपने वेदककालके भीतर ही निर्जीर्ण हो यहाँपर यह सूत्रार्थका निर्णय है। अब इस स्थानपर विद्यमान इस क्षपक जीवके तीन संज्वलनोंके. स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्मके प्रमाणका अवधारण करनेके लिए आगेका सूत्रप्रबन्ध आया है
* इस समय संचालनोंका स्थितिबन्ध एक माह और कुछ कम दस दिवसप्रमाण होता है।
७२५. पूर्वोक्त सन्धिविषयक स्थितिबन्धके यथाक्रम अन्तर्मुहूर्त अधिक दस दिवसको हानिवश प्रकृत स्थितिबन्धकी सिद्धि विसंवादरहित होकर पायो जाती है।
* उन कर्मोका सत्कर्म दो वर्ष कुछ कम आठ माहप्रमाण होता है।
६७२६. यहाँपर भी स्थितिसत्कर्मकी हानि साधिक आठ माहप्रमाण त्रैराशिक क्रमसे साथ लेनी चाहिए । शेष कथन सुगम है।।
* तदनन्तर समयमें मानको तृतीय कृष्टिमेंसे प्रवेशपुंजका अपकर्षण करके प्रथम स्थितिको करता है।
* तथा उसी विषिसे मानको तृतीय कृष्टिका वेदन करनेवाले क्षपक जीवके जो प्रथम स्थिति प्राप्त होती है उसके एक समय अधिक एक आवलिप्रमाण काल जब शेष रहता है।
* तब मानका अन्तिम समयवर्ती वेदक होता है।