Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयषवलासहिदे कसायपाहुडे ६६६८. किट्टीवेदगपढमसमये अटुवस्समेत्तमेदेसि ठिदिसंतकम्मं होदूण तत्तो कमेण परिहाइदूण एदम्मि समये छवस्साणि अंतोमुहतूणट्टमासब्भहियाणि होदूण परिसिद्धमिदि वुत्तं होदि । एत्थ अटुवस्समेतपुस्विल्लटिविसंतादो परिहीणा सेसट्रिदिप्पमाणमंतोमुत्ताहियचत्तारिमासेहि सादिरेयवस्समेत्तमिदि घेत्तन्वं । तिण्हं संगहकिट्टीणं वेदगकालभंतरे जवि चण्हं वस्साणं परिहाणी लब्भदि, तो पढमसंगहकिट्टीवेदगकालम्मि केतियं लभामो ति तेरासियं कादूण सादिरेयतिभागभहियएगवस्समेत्तढिदिसंतपरिहाणो सिस्साणमेत्य वरिसेयव्वा ।
* तिण्हं धादिकम्माणं ठिदिबंधो दस वस्साणि अंतोमुहुत्तणाणि [६]
६६६९. पुग्विल्लसंधिविसये संखेज्जवस्ससहस्समेतो तिण्हं घादिकम्माणं ट्रिविबंधो तत्तो संखेज्जगुणहाणोए जहाकम परिहाइदूण अंतोमुहत्तणवसवस्सपमाणो एवम्मि समये संजादो' त्ति वुत्तं होइ।
* घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्म संखेज्जाणि वस्साणि [७]
६६७०. पुव्वुत्तसंघीए संखेज्जवस्ससहस्समेंत्तमेदेसि ठिदिसंतकम्म संखेजेहि दिदिखंडयसहस्सेहि संखेज्जगुणहाणीए तत्तो सुठु ओहट्टिदूण तप्पाओग्गसंखेज्जवस्सपमाणेणेण्हि पयट्टदि त्ति भणिदं होइ।
* सेसाणं कम्माणं द्विदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्साणि [८] ६६७१. किं कारणं ? अघादिकम्माणं दिदिसंतकम्मस्स असंखेज्जगुणहाणीए जहाकम
१६६८. कृष्टिवेदकके प्रथम समयमें इन कर्मोका स्थितिसत्कर्म आठ वर्षप्रमाण होकर उससे क्रमसे घटकर इस समय छह वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम आठ माह अधिक होकर निश्चित होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहाँपर आठ वर्षप्रमाण पहलेके स्थितिसत्कर्मसे घटी हुई समस्त स्थितिका प्रमाण सान्तर्मुहुर्त चार माह अधिक एक वर्षप्रमाण होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । तीन संग्रह कृष्टियोंकी यदि वेदककालके भीतर चार वर्षप्रमाण स्थितिकी हानि प्राप्त होती है तो प्रथम संग्रह कृष्टिके वेदककालमें कितनी स्थिति प्राप्त करेंगे इस प्रकार त्रैराशिक करके साधिक तृतीय भाग अधिक एक वर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्मको हानि शिष्योंको यहांपर दिखलानी चाहिए।
* तीन घातिकर्मोंका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त कम वस वर्षप्रमाण होता है ।।
६६६९. पिछछी सन्धिमें तीन घातिकर्मोका स्थितिबन्ध संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता था, उससे संख्यात गुणहानि द्वारा क्रमसे घटकर इस समय अन्तर्मुहूर्त कम दस वर्षप्रमाण हो गया है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* तीन घातिकर्मोंका स्थितिसत्कर्म संख्यात वर्षप्रमाण होता है ।
६६७०. पूर्वोक्त सन्धिमें इन कर्मोंका स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्षप्रमाण होता था वह संख्यात हजार स्थितिकाण्डकों द्वारा संख्यात गुणहानि होकर उससे पर्याप्त घटकर इस समय तत्प्रायाग्य संख्यात वर्षप्रमाण प्रवृत्त होता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* शेष कर्मोंका स्थितिसत्कम असंख्यात वर्षप्रमाण होता है। ३६७१. शंका-इसका क्या कारण है ? समाधान-अघाति कोका स्थितिसत्कर्म असंख्यात गुणहानि द्वारा क्रमसे घटता हुआ भी