Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए अट्ठममूलगाहाए चउत्थभासगाहा
१९१ $ ४९९. एदम्मि जिल्लेवणटाणाणं परवणावहारणे दुविहो पुज्वाइरियाणमुवएसो बदम्वो त्ति भणिदं होदि; पवाइज्जमाणापवाइज्जमाणभेदेण दोण्हमुवएसाणमेत्य संभवदंसणादो।
* एक्केण उवदेसेण कम्मद्विदीए असंखेज्जा भागा णिन्लेवणढाणाणि ।
$५००. पुव्वुत्ताणं दोण्हमुबएसाणं मज्झे एक्केण ताव उवएसेण कम्मदिदीए असंखेज्जभागमेत्ताणि एगसमयपबद्धस्स भवबद्धस्स वा णिल्लेवणढाणागि होंति ति सुत्तत्थसंबंधो। संपहि कधमेत्तियमेत्ताणि एगसमयपबद्धस्स गिल्लेवणढाणाणि जादाणि त्ति पुच्छाए णिण्णयं कस्सामो। तं जहा-जो समयपबद्धो णिरुद्धकम्महिदीए आदिसमयम्मि बद्धो, तस्स पदेसग्गं बंधपमयप्पहुडि पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेत्तकालं णिच्छयेण होदूण पुणो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकालचरिमसमए णिस्सेसं होदूण गमणपाओग्गं होवि, हेट्ठिमकालन्भंतरे ओंकड्डियूण वेदिज्ज. माणस्स तस्स तम्मि उद्देसे गिरवसेसं पिल्लेवणे विरोहाणवलंभादो। तदो एदमेगं णिरुद्धसमयपबद्धस्स पिल्लेवणटाणं होदि ।
६५०१. अधवा तत्तो उवरिमसमयम्मि वि तं पदेसगं णिस्सेसं होदूण गमणपाओग्गं होदि; हेटिमओकड्डणा परिणामाणं तहाविहणिल्लेवणट्ठाणुप्पत्तीए वि कारणभूदाणं संभवोव. लंभादो। एवं समयुत्तरकमेण णिरुद्धसमयपबद्धस्स पिल्लेवणट्ठाणाणि बझंतरंगकारणसव्वपेक्खाणि होदण गच्छंति जाव कम्मट्टिदिचरिमसमओ ति। तदो कम्मट्रिदीए असंखेज्जभागमेत्ताणि पिल्लेवणट्टाणाणि णिरुद्धसमयपबद्धस्स लद्धाणि होति । एवं सम्वेसि पि समयपबद्धाणमप्पणो कम्मदिदीए असंखेज्जा भागा पिल्लेवणट्ठाणाणि होति ति वत्तव्वं । एवं चेव भवबद्धाणं
$ ४९९. इस निलेपनस्थानोंकी प्ररूपणाके अवधारण करने में पूर्व आचार्योंका उपदेश दो प्रकारका जानना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि यहाँपर प्रवाह्यमान और अप्रवाह्यमानके भेदसे दो प्रकारके उपदेश सम्भव दिखाई देते हैं।
* एक उपदेशके अनुसार कर्मस्थितिके असंख्यात बहुभागप्रमाण निर्लेपनस्थान होते हैं।
६५००. पूर्वोक्त दोनों प्रकारके उपदेशोंमें एक उपदेशके अनुसार तो एक समयप्रबद्ध के या भवदद्धके कर्मस्थितिके असंख्यात बहुभागप्रमाण निर्लेपनस्थान होते हैं यह इस सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है । अब एक समयप्रबद्धके इतने निर्लेपनस्थान कैसे हो जाते हैं ऐसो पृच्छा होनेपर आगे उसका निर्णय करेंगे। वह जैसे-जो समयप्रबद्ध विवक्षित कर्मस्थितिके प्रथम समय में बन्धको प्राप्त हुआ है उसका प्रदेशपुंज बन्धसमयसे लेकर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक निश्चयसे रहकर पुनः पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके अन्तिम समय में निश्शेष हो गमनके योग्य होता है, मात्र अधस्तन कालके भीतर अपकर्षण होकर वेद्यमान उसके उस स्थानमें पूरी तरह निलेपनको प्राप्त होने में विरोध नहीं उपलब्ध होता। इसलिए वह एक विवक्षित समयप्रबद्धका निर्लेपनस्थान है।
५०१. अथवा उससे अगले समयमें भी उसका प्रदेशपुंज निश्शेष होकर गमनके योग्य होता है, क्योंकि इससे पहले उस प्रकारके निर्लेपनस्थानकी उत्पत्तिमें कारणभूत अपकर्षणप्रायोग्य परिणाम सम्भव नहीं हैं। इस प्रकार एक-एक समय अधिकके क्रमसे विवक्षित समयप्रबद्धके बाह्य और आभ्यन्तर कारणसापेक्ष निर्लेपनस्थान होकर कर्मस्थितिके अन्तिम समय तक जाते हैं। इसलिए विवक्षित समयप्रबद्धके निर्लेपनस्थान कर्मस्थितिके असंख्यात बहुभाग प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार सभी समयप्रबद्धोंके अपनी-अपनी कर्मस्थितिके असंख्यात बहुभागप्रमाण निर्लेपनस्थान