Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढीए अभवसिद्धिकपाओग्गा अण्णापरूपणा
२४७ पदेसग्गादो णिव्वत्तिज्जमाणकिट्टीओ बहुगीओ, आहो संकामिज्जमाणयादो ति आसंकाए गिरारेगीकरण?मुत्तरसुत्तावयारो
* बल्झमाणियादो थोवाओ णिव्वत्तेदि ।
६६२०. कुदो ? एगसमयपबद्धमेत्तदव्वेण णिव्यत्तिज्जमाणाणं तासिं थोवभावसिद्धोए णिव्वाहमुवलंभादो।
* संकामिज्जमाणयादो असंखेज्जगुणाओ।
६६२१. कुदो ? दिवड्डगुणहाणीणमसंखेज्जविभागमेत्तसमयपबद्धहि एवासि णिव्वत्तिदसणादो। प चेदमसिद्धं, तिगुणोकडणभागहारेण दिवडगुणहाणिमेत्तसमयपबढेसु ओवट्टिदेसु संकामिज्जमाणवष्वस्सागमणदसणादो। तदो दवमाहप्पमस्सियूण सिद्धमेदासिमसंखेज्जगुणतं। गुणगारो च पलिदोवमस्स असंखेज्जविभागमेतो। एवमेदासि थोवबहुत्तं पदुप्पाइय संपहि बज्झमाणेण पदेसग्गेण णिव्वत्तिज्जमाणाणं किट्टीणं सेससंगहकिट्टीपरिहारेण चदुसु चेव पढमसंगहकिट्टीसु संभव. विसेसावहारणटुमुत्तरसुत्तारंभो
* जाओ ताओ बज्झमाणयादो पदेसग्गादो णिव्वत्तिज्जति ताओ चदुसु पढमसंगह किट्टीसु ।
पुंजमेंसे निष्पन्न होनेवाली कृष्टियां बहुत होती हैं या संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजमेंसे निष्पन्न होनेवाली कृष्टियां बहुत होती हैं ऐसी आशंका होनेपर निःशंक करनेके लिए आगेके सूत्रका अवतार करते हैं
* बध्यमान प्रदेशपुंजमेंसे स्तोक अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है।
5६२०. क्योंकि एक समयप्रबद्धमात्र द्रव्यसे निष्पन्न होनेवाली उन अपूर्व कृष्टियोंके स्तोकपनेकी सिद्धि निर्बाधरूपसे पायो जाती है।
* तथा संक्रम्यमाण प्रदेशपुंजमेंसे निष्पन्न होनेवाली अपूर्व कृष्टिया असंख्यातगुणी होती हैं। -६६२१. क्योंकि डेढ़ गुणहानियोंके असंख्यातवें भागमात्र समयप्रबद्धोंसे इन अपूर्व कृष्टियोंकी निष्पत्ति देखी जाती है। और यह कथन असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि तिगुणे अपकर्षण भागहारसे डेढ़ गुणहानिमात्र समयप्रबद्धोंके भाजित करनेपर संक्रम्यमाण द्रव्यका आना देखा जाता है। इसलिए द्रव्यकी अधिकताका आलम्बन लेनेपर इन अपूर्व कृष्टियोंका असंख्यातगुणपना सिद्ध हो जाता है। यहांपर गुण कार पल्योपमका असंख्यातवा भाग है। इस प्रकार इनके अल्पबहत्वका कथन करके अब बध्यमान प्रदेशपुंजसे निष्पन्न होनेवाली कृष्टियां शेष संग्रह कृष्टि छोड़कर चार ही प्रथम संग्रह कृष्टियोंमें सम्भव हैं इस विशेषका अवधारण करनेके लिए आगेके सूत्रका आरम्भ करते हैं
* जो वे अपूर्व कृष्टियां बध्यमान प्रवेशपुंजमेंसे निष्पन्न की जाती हैं ये चारों प्रथम संग्रहकृष्टियों में पायी जाती हैं।