Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh

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Page 278
________________ खवगसेडीए अण्णा परूवणा २४५ ओवट्टावेयूण' हेट्टिमकिट्टीसरूवेणेव ठवेवित्ति वुत्तं होइ। एवं विदियादिसमयेसु वि ओवट्टणाघादो एसो अणुगंतव्यो। णवरि पढमसमयविणासिदकिट्टोहितो विदियाविसमयेसु विणासिज्जमाणकिट्टीओ असंखेज्जगुणहीणकमेण दटुव्वाओ; उवरि चुग्णिसुत्ते तहाविहपरूवणोवलंभादो। एवमेसो किट्टीणमणसमयोवट्टणं कुणमाणो किट्टीवेदगपढमसमये चेव आढविय किट्टीकरणद्धाए पुवणिव्यत्तिदकिट्टोणं हेढा तदंतरालेसु च अण्णाओ अपुवकिट्टोओ एदेण विहाणेण णिवत्तेदि त्ति पदुप्पायणफलो उरिमसमयपबंधो * कोहस्स पढमसंगहकिट्टि मोत्तण सेसाणमेक्कारसण्हं संगहकिट्टीणं अण्णाओ अपुवाओ किट्टीओ णिवत्तेदि । ६६१७. वेदिज्जमाणकोहपढमसंगहकिट्टीवज्जाणं सेसाणमेक्कारसणं संगहकिट्टीणं संबंधिणोओ अण्णाओ अपुवाओ किट्टीओ एसो पढमसमयकिट्टोवेवमओ णिवत्तेदुमाढवेवि ति भणिवं होदि । कोहपढमसंगहकिट्टीए परिवज्जणमेत्य ण कायब्वं, तत्थ वि बंधेण अपुव्वाणं किट्टीणं णिव्वत्तिज्जमाणाणं संभवोवलंभादो ति चे? सच्चमेदं, किंतु कोषपढमसंगहकिट्रोए बंधेणेवापुवामओ किट्टीओ अंतरेसु णिवत्तिज्जंति । सेसाणं पुण संगहकिट्टीणं संकामिज्जमाणपदे. सग्गेण जहासंभवं बज्झमाणपदेसग्गेण च अपुवाओ किट्टीओ णिव्वत्तिजंति ति एक्स्स विसेसस्स भागप्रमाण अनन्त संग्रह कृष्टियोंका अपवर्तनाघात द्वारा एक समयमें विनाश करता है। तत्प्रमाण कृष्टियोंकी शक्तिको अपवर्तना करके अधस्तनकृष्टिरूपसे उन्हें स्थापित करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इसी प्रकार द्वितीयादि समयोंमें भी यह अपवर्तनाघात जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि प्रथम समयमें विनश्यमान कृष्टियोंकी अपेक्षा असंख्यात गुणहीनक्रमसे जानना चाहिए, क्योंकि आगे चूर्णिसूत्र में उस प्रकारसे प्ररूपणा उपलब्ध होती है। इस प्रकार यह कृष्टियोंकी अनुसमय अपवर्तना करता हुआ कृष्टिवेदकके प्रथम समयमें ही बारम्भ करके कृष्टिकरण कालमें पहले निष्पन्न की गयो कृष्टियोंके नीचे और उनके अन्तरालोंमें अन्य अपूर्व कृष्टियोंको इस विधिसे निष्पन्न करता है इस प्रकारके कथनके फलस्वरूप आगेके सूत्रप्रबन्धको आरम्भ करते हैं * क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिको छोड़कर शेष ग्यारह संग्रह कृष्टियोंको अन्य अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है। ६६१७. क्रोधसंज्वलनकी वेद्यमान प्रथम संग्रह कृष्टिसे रहित शेष ग्यारह संग्रह कृष्टियोंसे सम्बन्ध रखनेवालो अन्य अपूर्व कृष्टियोंको यह कृष्टिवेदक जीव प्रथम समयमें निष्पन्न करनेके लिए बारम्भ करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। शंका-क्रोधसंज्वलनकी प्रथम संग्रह कृष्टिका निषेध यहाँपर नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसमें भी बन्धसे निष्पन्न होनेवाली अपूर्व कृष्टियां उत्पन्न होती हुई उपलब्ध होती हैं ? समाधान-यह कथन सत्य है, किन्तु क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिके अन्तरालोंमें बन्धसे अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है। परन्तु शेष संग्रह कृष्टियोंकी संक्रम्यमाण प्रदेशके अग्रभागसे और यथासम्भव बध्यमान प्रदेशके अग्रभागसे अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है। इस १. बा. प्रती वड्ढावेयूण इति पाठः ।

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