Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढोए बज्झमाणपदेसग्गादो णिप्पज्जमाणापुवकिट्टोणं परूवणा * किं सव्वेसु किट्टीअंतरेसु आहो ण सव्वेसु ? ६६२५. सुगमं। * ण सव्वेसु ।
६६२६. ण सव्वेसु किट्टीअंतरेसु तासिमस्थि संभवो, किंतु पडिणियवकिट्टोअंतरेसु चेव तासिमुप्पत्ती होइ त्ति भणि होदि। एवं सो वुण जइ ण सम्वेसु किट्टीअंतरेसु तो कदमेसु किट्टोअंतरेसु तासिमुप्पत्तिविसओ त्ति भण्णमाणो पुणो वि पुच्छाणिद्देसमाह
* जइ ण सव्वेसु, कदमेसु अंतरेसु अपुवाओ णिवत्तयदि ।
5 ६२७. केत्तियमेत्ताणि किट्टीअंतराणि मोतूण पुणो केत्तिएसु किट्टीअंतरेसु ताओ अपुवाओ किट्टीओ बज्झमाणपदेससंबंधिणोओ णिवत्तेदि ति पुच्छा कदा होइ।
* उवसंदरिसणा।
६६२८. एत्तियाणि किट्टीअंतराणि उल्लंघियूण पुणो एत्तियमेत्तेसु किट्टीअंतरेसु तासि णिवत्ती होदि त्ति एदस्स अत्थविसेसस्स फुडीकरणमुवसंदरिसणा णाम । तमिदाणि परवइस्सामो त्ति वुत्तं होइ।
* क्या सब अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंमें उन अपूर्व कृष्टियोंकी रचना करता है या सभी अवयव कृष्टियों के अन्तरालोंमें उनकी रचना नहीं करता है ?
६६२५. यह सूत्र सुगम है। * सब अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंमें उन अपूर्व कृष्टियोंकी निष्पत्ति नहीं करता।
१६२६. सब अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंमें उन अपूर्व कृष्टियोंकी निष्पत्ति करना सम्भव नहीं है; किन्तु प्रतिनियत अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंमें ही उनकी निष्पत्ति होती है यह उक्त सूत्र द्वारा कहा गया है। इस प्रकार वह यदि सब अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंमें उनकी निष्पत्ति नहीं होती तो कितने कृष्टियोंके अन्तरालोंमें वे निष्पत्तिका विषय होती हैं, ऐसा कहनेवाला फिर भी पृच्छाका निर्देश करता है
. * यदि सब अवयव कृष्टियोंमें उन्हें निष्पन्न नहीं करता है तो कितनी अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंमें उन अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है।
६२७. कितने अवयव कृष्टियोंसम्बन्धी अन्तरालोंको छोड़कर पुनः कितने अवयव कृष्टियोंसम्बन्धी अन्तरालोंमें बध्यमान प्रदेशपुंजसम्बन्धी उन अपूर्व कृष्टियोंको निष्पन्न करता है यहां यह पृच्छा की गयी है।
* आगे उसी विषयको स्पष्ट करते हैं।
६६२८. इयत्प्रमाण अवयव कृष्टियोंके अन्तरालोंका उल्लंघन कर पुन: इयत्प्रमाण अवयव कृष्टि-अन्तरालोंमें उन अपूर्व कृष्टियोंकी निष्पत्ति होती है इस प्रकार इस अर्थविशेषका स्पष्टीकरण करनेका नाम उपसंदशिना है । आगे इस समय उसकी प्ररूपणा करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
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