Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* एक्केण समयेण णिल्लेविज्जति समयपबद्धा वा भवबद्धा वा एक्को वा, दो वा तिणि वा; उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
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९५६३. एगा दिए गुत्तरपरिवड्डीए गंतूण उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता चैव समयपबद्धा भवबद्धा च एगसमएणणिल्ले विज्जमाणा होंति, णादिरित्ता त्ति भणिदं हे इ । एसा च परूवणा खवगस्स अक्खवगस्स च साहारणभूदा दट्ठव्वा, उभयत्थ वि उक्कस्सेण पलियोंवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणं भवसमयपबद्धाणमेगसमयेण णिल्लेवण संभवं पडि विसेसाभावादो ।
* एदेण वि जवमन्झं ।
५६४. एदेण वि अनंतरसुत्तणिद्दिद्वेण अत्यविसेसेण परिच्छिष्णसरुवाणमेयमेगादिएगुत्तरकमेण एगसमयेण णिल्ले विज्जमाणाणं भवसमयपबद्धाणमवोदकालमस्तियूण जवमज्झपरूवणा कायध्वा त्ति भणिदं होइ । संपहि जइ वि एवस्स जवमज्झस्स परूवणा सुगमा तो वि मंदबुद्धिसोवारजणाणुग्गह तव्विवरणं कुणमाणो चुष्णिसुत्तयारो उवरिमं विहासा गंथमाढवे
* एक्क्केण पिल्ले विज्जति ते थोवा ।
५६५. एवं भणिदे अदीवे काले जे एगेगसमयपबद्धा भवबद्धा च होदूण णिल्लेविवा सिमदीदे काले सम्वत्थ उच्विणिण गहिदसलागाओ अनंतसंखावच्छिण्णाओ होदूण उवरिमविपपडिबद्धसलागाहतो थोवाओ ति वृत्तं होइ ।
* जो समयबद्ध या भवबद्ध एक समय द्वारा निर्लेपित किये जाते हैं वे एक होते हैं, अथवा दो होते हैं अथवा तीन होते हैं। इस प्रकार क्रमसे जाकर उत्कृष्ट पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं ।
$ ५६३. एकसे लेकर एक-एक अधिक परिवर्धित क्रमसे जाकर एक समय द्वारा निर्लेप्यमान समयप्रबद्ध और भवबद्ध उत्कृष्टसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं, इनसे अधिक नहीं होते यह उक्त कथनका तात्पर्य है । किन्तु यह प्ररूपणा क्षपक और अक्षपक के समानरूपसे जाननी चाहिए, क्योंकि दोनों ही स्थानोंपर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण भवबद्ध और समयप्रबद्धोंका निर्लेपन सम्भव होनेके प्रति विशेषताका अभाव है ।
* इस अर्थविशेषके अनुसार भी यवमध्य होता है ।
६५६४. 'एदेण वि' अर्थात् इस अनन्तर सूत्र निर्दिष्ट अर्थविशेषके अनुसार भी एकसे लेकर एक-एक अधिक के क्रमसे परिच्छिन्न स्वरूप निर्लेप्यमान इन भवबद्ध और समयप्रबद्धोंकी अतीतकाल के आश्रय से यवमध्य प्ररूपणा करनी चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब यद्यपि इस यवमध्यकी प्ररूपणा सुगम है, तो भो मन्दबुद्धि श्रोताओंके अनुगृहके लिए उसका विवरण करते हुए चूर्णिसूत्रकार आगे विभाषाग्रन्थका आरम्भ करते हैं
* जो समयप्रबद्ध या भवबद्ध एक-एक करके निर्लेपित किये गये हैं वे सबसे थोड़े हैं। १६५. ऐसा कहनेपर अतीत कालमें जो एक-एक समयप्रबद्ध और भवबद्ध निर्लेपित कि गये हैं उनकी अतीत कालमें सर्वत्र एकत्रित करके ग्रहण की गयी शलाकाएं अनन्त संख्यारूप होकर आगे के भेदोंसे सम्बन्ध रखनेवाली शलाकाओं की अपेक्षा थोड़ी होती हैं ।