Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
६ ५७५. एवाओ पलिदोवमस्स असंखेज्ज विभागमेत्तीओ चेव निरंतरमसामण्णाओ द्विदीओ अभवसिद्धियपाओग्गे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तीओ होंति त्ति पुव्वमेव भणिवत्तावो । किंतु पुव्विल्लेहितो एवाओ असंखेज्जगुणाओ । कधमेदं परिच्छिज्जवे ? एवम्हावो चेव सुत्तावो ।
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* पालिदोवमवग्गमूलमसंखेज्जगुणं ।
§ ५७६. किं कारणं ? असामण्णद्विवीणं णिरंतर मुवलब्भमाणाणं पलिदोवमपढमवग्गमूलासंखेज्जभागपमाण त्तावो। ण चेदमसिद्धं एवं ? एवम्हादो चेव सुत्तादो तस्स तहा भाव परिणिच्छयादो । * णिसेगगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जगुणं ।
$ ५७७. कुवो ? असं खेज्जपलिदोषमपढमवग्गमूल पमाणत्तावो । जेवमसिद्ध; कम्मट्ठदिजाणा गुणहासिला गाहिं कम्मद्विदीए भाजिदाए परिप्फुडमेवासंखेज्जपढमवग्गमूलमेत्तणिसेगगुणहाणिद्वाणपमाणुपत्तिदंसणावो ।
* भवबद्धाणं जिन्लेवणद्वाणाणि असंखेज्जगुणाणि ।
५७८. एवाणि वि असंखेज्जपढमवग्गमूलमेत्ताणि चेव । किंतु असंखेज्जणिसे यगुणहाणि - भाणि तदो असंखेज्जगुणाणि जावाणि ।
* समयपबद्धाणं णिल्लेवणट्ठाणाणि बिसेसाहियाणि ।
$ ५७५. ये पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होती हैं, क्योंकि अभवसिद्धिक जीवोंके योग्य निरन्तर असामान्य स्थितियां पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं यह पहले ही कह आये हैं । किन्तु ये पूर्वकी अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान - यह इसी सूत्र से जाना जाता है ।
* पल्योपमका प्रथम वर्गमूल असंख्यातगुणा है ।
६ ५७६. शंका - इसका क्या कारण है ?
समाधान - क्योंकि निरन्तर उपलब्ध होनेवाली असामान्य स्थितियाँ पत्योपमके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं। और इस प्रकार यह कथन असिद्ध नहीं है, क्योंकि इसी सूत्रसे उसके उस प्रकार के होनेका ज्ञान होता है ।
* निषेक गुणहानिस्थानान्तर असंख्यात गुणा है ।
$ ५७७. क्योंकि यह असंख्यात पल्योपमके प्रथम वर्गमूलप्रमाण है और यह कथन असिद्ध नहीं है, क्योंकि कर्मस्थितिसम्बन्धी नाना गुणहानिशलाकाओंके द्वारा कर्मस्थिति के भाजित करनेपर स्पष्ट ही असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण निषेकगुणहानिस्थानोंके प्रमाणकी उत्पत्ति देखी जाती है ।
* भवबद्धोंके निर्लेपनस्थान असंख्यातगुणे हैं ।
$ ५७८. ये भी असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण ही हैं । किन्तु इनमें असंख्यात निषेकगुणहानियां गर्भित हैं, इस कारण ये असंख्यातगुणे हो जाते हैं ।
* समयप्रबद्धोंके निर्लेपनस्थान विशेष अधिक हैं ।