Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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४.
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
* विहासा।
३८१. सुगमं। * तं जहा। 5 ३८२. सुगम। -सु लेस्सासु सादेण असादेण च बद्धाणि अमज्जाणि ।
६३८३. छस लेस्सास सादासादोदयेसु च पुव्यबद्धाणि कम्माणि णियमा अस्थि, तेसि भयणिज्जत कारणाणवलंभादो।
* कम्म सिप्पेस मज्जाणि।
१३८४. कम्मेसन सिप्पेस च वट्टमाणेण पुज्वबद्धाणि भजियवाणि त्ति वुत्तं होंदि। एत्थ भयणिन्जत्ते कारणं सगमं। संपहि काणि ताणि कम्माणि जेसु वट्टमाषण बद्धाणं कम्माणं भयणिज्जत्तमेवं परूविज्जवि ति आसंकाए कम्मभेदाणं गिद्देस कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ
कम्माणि जहा-अंगारकम्म वण्णकम्मं पव्वदकम्ममेदेसु कम्मेसु मज्जाणि ।
३८. एत्य 'अंगारकम्मं इवि भणिवे अंगारसंपायणट्ठा कट्टदहणकिरिया घेत्तव्वा, कटुंगारसमाणणेण बहूणं कम्मकराणं जोवणोवलंभादो । अधवा तेहिं तहा णिव्वत्तिर्देहि अंगारेहि
अब इस प्रथम भाष्यगाथाको विभाषा करते हैं। ३८१. यह सूत्र सुगम है। * वह जैसे। ६३८२. यह सूत्र सुगम है।
* छह लेश्याओंमें तथा सातोदय और असातोदयके साथ पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके अभजनीय हैं।
६३८३, इन छहों लेश्याओंमें तथा सातोदय और असातोदयमें पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके नियमसे पाये जाते हैं, क्योंकि उनके भजनीयपने में कारण नहीं पाया जाता।
* कर्मों और शिल्पोंमें पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय है।
१३८४. कर्मों में और शिल्पकार्यो में विद्यमान जीवके द्वारा पूर्वबद्ध कर्म इस क्षपकके भजनीय हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहां भजनीयपने में कारण सुगम है। अब वे कर्म कौन हैं जिनमें विद्यमान जीवके द्वारा बद्ध कर्म इस क्षपके भजनीय हैं यह कहा जाता है ऐसी आशंका होनेपर इन कर्मोका निर्देश करते हुए आगेके सूत्रको कहते हैं
* कर्म यथा-अंगारकर्म, वर्णकर्म और पर्वतकर्म इन कर्मोमें बद्ध कर्म इस क्षपकके भमनीय हैं।
६३८५. इस सूत्रमें 'अंगारकम्म' ऐसा कहनेपर अंगारकार्यको सम्पादन करने के लिए लकड़ीके जलानेरूप क्रियाको ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि यहां काष्ठांगारसे बने भोजनसे बहुतसे कर्मकरोंका जीवन उपलब्ध होता है। अथवा अंगारकर्मसे जो उसी प्रकारके अन्य अंगार