Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगसेढोए तदियमूलगाहाए विदियत्थे एका भासगाहा * एवं चेव मायादिवग्गणादो० । * लोभादिवग्गणादो० ।
६२३६. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि ति ण एत्थ किंचि वक्खाणेयधमस्थि, जाणिदजाणावणे फलाभावादो । एवमेदासु पंचसु भासगाहासु विहासिदासु मूलगाहाए' किट्टी च पदेसग्गेणेत्ति' पढमो अत्थो समत्तो भवदि। संपहि 'अणुभागग्गेणेत्ति' मूलगाहाविदियावयवमस्सियूण विदियस्स अत्यस्त विहासणं कुणमाणो तत्थ पडिबद्धा एक्का भासगाहा अस्थि त्ति जाणावणट्ठमुत्तरसुत्तमाह
* मुलगाहाए विदियपदमणुभागग्गेणेत्ति । एत्थ एका भासगाहा ।
६२३७. 'अणुभागग्गेणेत्ति' जं मूलगाहाए विदियं बीजपदं संगहकिट्टीणमणुभागग्गेण होणाहियभावगवेसण?मोइण्णं तस्स विहासण?मेत्थ एक्का भासगाहा होदि । तिस्से समुक्कित्तणमिदाणि कस्सामो त्ति भणिवं होदि ।
* तं जहा।
६२३८. सुगमं। (१३२) पढमा च अणंतगुणा विदियादो णियममा दु अणुभागो।
तदियादो पुण विदिया कमेण सेसा गुणेणहिया ॥ १७५ ॥
इसी प्रकार माया संज्वलनकी आदि वर्गणामेंसे मायासंज्वलनके उत्तर पद अर्थात् अन्तिम वर्गणाको घटावे। इस प्रकार घटानेपर जो अनन्तवा भाग शेष रहता है उतना उसकी वादि वर्गणामें शुद्ध शेषका प्रमाण होता है।
तथा इसी प्रकार लोभसंज्वलनकी आदि वगंणामेंसे लोभ संज्वलनके उत्तरपद अर्थात अन्तिम वर्गणाको घटावे। इस प्रकार घटानेपर जो अनन्तवा भाग शेष रहता है उतना उसको आदि.वर्गणामें शुद्ध शेषका प्रमाण होता है।
६२३६. ये सूत्र सुगम हैं, इसलिए यहापर कुछ व्याख्यातव्य नहीं है, क्योंकि जिनका ज्ञान करा दिया गया है उनका पूनः ज्ञान कराने में फलका अभाव है। इस प्रकार इन पांच भाष्यगाथाओंकी विभाषा करनेपर मूलगाथाके 'किट्टी च पदेसग्गेण' इस चरण का प्रथम अर्थ समाप्त होता है। अब मूलगाथाके 'अणुभागग्गेण' इस दूसरे पदका अवलम्बन लेकर दूसरे अर्थको विभाषा करते हुए उस अर्थमें प्रतिबद्ध एक भाष्यगाथा है इस बातका ज्ञान कराने के लिए आगे के सूत्रको कहते हैं
* मूलगाथाका जो दूसरा पद 'अणुभागग्गेण' है उसमें एक भाष्यगाथा आयी है। ..
६२३७. मूलगाथाका जो 'अणुभागग्गेण' दूसरा बीजपद है वह संग्रह कृष्टियोंके अनुभागपुंजको अपेक्षा होनाधिक भावकी गवेषणा करने के लिए अवतीर्ण हुआ है। उसकी विभाषा करने के लिए प्रकृतमें एक भाष्यगाथा है। प्रकृतमें उसको समुत्कीर्तना करेंगे यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* वह जैसे। ६२३८. यह सूत्र सुगम है। .
(१२२ ) क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिसे प्रथम संग्रह कृष्टि अनुभागपुंजकी अपेक्षा नियमसे अनन्तगुणी अधिक है। पुतः तीसरी संग्रहकृष्टि से दूसरी संग्रहकृष्टि अनुभागपुंजको अपेक्षा अनन्नगुणी है। इसी प्रकार मान, माया और लोभ संज्वलनको तोनों संग्रह कृष्टियां तीसरीसे दूसरी और दूसरोसे पहली क्रमसे अनन्तगुणी अधिक हैं।
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