Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयघवलासहिदे कसायपाहुडे * णवमीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ। * अट्ठमीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ । * सत्तमीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ । * छटट्ठीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ । * पंचमीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ। * चउत्थीए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ। * तदियाए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ । * विदियाए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ । * पढमाए किट्टीए वेदगकालो विसेसाहिओ।
5 ३०४. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि। संपहि एत्थ सम्वत्थ विसेसो किंपमाणो ति आसंकाए इदमाह
* विसेसो संखेज्जदिभागो।
६३०५. गयत्थमेदं सत्तं । एदम्हादो कोहपढमसंगहकिट्टीवेदगकालादो उवरि किट्टीकरणद्धा संखेज्जगुणा, सादिरेयतिगुणपमाणत्तादो। अस्सकण्णकरणद्धा विसेसाहिया। छण्णोकसायक्खवणद्धा विसेसाहिया । इत्यिवेदक्खवणद्धा विसेसाहिया। णवंसयवेदक्खवणद्धा विसेसाहिया । अंतरकरणद्धा विसेसाहिया । अट्ठकसायक्खवणद्धा संखेज्जगुणा । एवं तदियमूलगाहाए अत्यविहासा समत्ता।
* नववों कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * आठवीं कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * सातवीं कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * छटो कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। के पांचवों कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * चौथी कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * तीसरी कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * दूसरी कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है। * पहली कृष्टिका वेदककाल विशेष अधिक है।
$३०४. ये सूत्र सुगम हैं। अब यहां सर्वत्र विशेषका प्रमाण क्या है ऐसी आशंका होनेपर इस सूत्रको कहते हैं
* विशेषका प्रमाण संख्वातवां भाग है।
६३०५. यह सूत्र गतार्थ है । इस क्रोधसंज्वलनको प्रथम संग्रह कृष्टिके वेदककालसे ऊपर कृष्टिकरणका काल संख्यातगुणा है, क्योंकि यह साधिक तिगुना है। उससे अश्वकर्णकरणका काल विशेष अधिक है। उससे छह नोकषायोंके क्षपणाका काल विशेष अधिक है। उससे नपुंसकवेदका क्षपणाकाल विशेष अधिक है ! उससे अन्तरकरणकाल विशेष अधिक है। उससे आठ कषायोंका क्षपणाकाल संख्यातगुणा है। इस प्रकार तीसरी मूलगाथाको अर्थ विभाषा समाप्त हुई।