Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
पि अपणो सरिसधणियपरमाणूण मेगावलियाए विरयणं काढूण पादेककमेगेगा वग्गणा समुप्पाएयथवा जाव उक्कeefsट्टि त्ति । एवं च विरचणाए कदाए किट्टोअद्वाणमेत्तिओ चेव वग्गणाओ जादाओ । एवं कयविण्णासाणमेदासि हेट्ठिमहेट्ठिमा वग्गणा अणुभागेण होणा होदि । उवरिम वरमा अणुभागेहिया होदि, अनंतगुणवड्डिकमेणेव तासिमवद्वाणणियमदंसणादो । एवमवट्ठिदादा सिमेहि पदेसग्गमस्सियूण सेढिपरूवणाए कोरमागाए विदिश्वग्गणं पेक्खियूणादिवरगणा पदेसग्गेण अहिया होदि, जहण्णसत्तीए परिणमंताणं परमाणूणं सुलहत्तदंसणा दो । एवमणंतरोवणिधाए सवासि किट्टवग्गणाणं पदेसग्गेण होणाहियभावो जोजेयव्वो । संपहि हेट्ठिमवग्गणा उबरिमवग्गणं पेक्खियूण केत्तियमेतेण अहिया होदित्ति एस्स पिण्णयकरणटुं गाहापच्छद्धमोइणं 'भागेणणंतिमेण दु०' । अनंतिमभागेणेव हे द्विमादो उत्ररिमा होणा होदित्ति भणिदं होइ, एरोगवग्गण विसेसमेत्तेण सव्वास किट्टीणमणंतराणंतरादो होणत्तणियमदंसणादो । संपहि एवं विहमे दिस्से गाहाए अत् विहामाणो विहासागंथमुत्तरं भणइ -
* विहासा ।
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६ २२०. सुगमं ।
* तं जहा ।
$ २२१. सुगमं ।
* जहणियाए वग्गणाए पदेसग्गं बहुअं ।
इस प्रकार रचना
तक पृथक-पृथक एक-एक वर्गणा उत्पन्न करनी चाहिए। करनेपर कृष्टियों के आयाम प्रमाण ही वर्गणाएं हो जाती हैं। इस प्रकार एक पंक्ति में रचित इन वर्गणाओं में से नीचेनोचेकी वर्गणा अनुभागको अपेक्षा होन होती है और उपरिम उपरिम वर्गणा अनुभाग की अपेक्षा अधिक-अधिक होती है, क्योंकि अनुभागकी अपेक्षा अनन्तगुणी वृद्धिरूपसे ही उनके अवस्थानका नियम देखा जाता है । इस प्रकार इस समय अवस्थित हुई इन वर्गणाओं के प्रदेशपुंजका आलम्बन लेकर श्रेणिप्ररूपणा करनेपर दूसरी वर्गणाको देखते हुए आदि वर्गणा प्रदेशपुंजकी अपेक्षा अधिक होती है, क्योंकि जघन्य शक्तिरूपसे परिणमन करनेवाले परमाणुत्रोंकी सुलभता देखी जाती है । इस प्रकार अनन्तरोपनिधाके अनुसार सब कृष्टिवर्गणाओंके प्रदेशपुंजको अपेक्षा होनाधिकपने की योजना कर लेनी चाहिए। अब अधस्तन वर्गणा उपरितन वर्गणाको देखते हुए कितने प्रमाण अधिक होती है इस प्रकार इस तथ्यका निर्णय करनेके लिए भाष्यगाथाका उत्तरार्ध अवतीर्ण हुआ है'भागेणणंतिमेण दु०' अनन्तवें भागप्रमाण हो अधस्तन वर्गणासे उपरिम वर्गणा हीन होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है, क्योंकि अनन्तर- अनन्तरं क्रमसे सभी वर्गणाओं में एक-एक विशेषप्रमाण हीनताका नियम देखा जाता है। अब इस प्रकार इस गाथाके अर्थकी विभाषा करते हुए आगे के विभाषा ग्रन्थको कहते हैं
* अब इस भाष्यगाथाकी विभाषा करते हैं ।
$ २२०. यह सूत्र सुगम है । वह जैसे ।
$ २२१. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य वर्गणा में प्रवेशपुंज बहुत है ।