Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
तत्थ तेरसगुणसिद्धीए णिव्वाहमुवलंभावो । एत्थ 'वग्गणा' त्ति वुत्ते एक्केक्का अंतरकिट्टी चेव अनंतस रिसधणियपरमाणुसमूहारद्धा एगेगा वग्गणा त्ति घेत्तव्वा । तासि समूहो वग्गणग्गमिदि भण्णदे । तदो विदियसंगह किट्टीए सव्ववग्गणा समूहादो पढमसंगह किट्टीए सब्बो बग्गणाकलावो acant किट्टी अद्धा परिच्छिण्णपमाणो संखेज्जगुणों त्ति एसो एत्थ सुत्तत्यसमुच्चओ ।
२१४. ' विवियादो पुण तदिया' एवं भणिदे कोहस्स विदिय संगह किट्टीए सव्ववग्गणाहितो तस्सेव तदियसंगह किट्टी सयलवग्गणासमूहों विसेसाहिओ होइ त्ति सुत्तत्थसंबंधो। विसेसपमाणमेत्थ दव्वाणुसारेणेव पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागपडिभागिय मिदि घेत्तव्वं । एवमेदेण सुत्तावयवकलावेण कोहपंजणस्स तिहुं संगह किट्टीणं वग्गणग्गमस्सियूण सत्यागप्पा बहुअ सुवइट्ठ । संपहि 'कमेण सेसा विसेस हिया' एवं भणिदे जहाकममेव माणादीणं पि तिन्हं संग्रहकिट्टी पावेवकं वग्गणग्गमस्सियूण विसेसाहियक मेग सत्थानप्याबहुअं का यव्वं । तदो परत्याणप्पाबहुअं च दव्वमिदि वृत्तं होइ । सेसं जहा पढमभासगाहाए वृत्तं तहा वत्तव्यं, विसेसाभावाद । तदो चेव पढमभासगाहानुसारेणेवेदिस्से विभासा कार्यात्रा ति पप्पाएमाणो सुत्तमुत्तरं
भणइ
* विहासा ।
§ २१५. सुगमं ।
* जहा पदेसग्गेण विहासिदं तहा वग्गणग्गेण विहासिदव्वं ।
समूहकी सिद्धि निर्बाध पायी जाती है। इम भाष्यगाथा में 'वग्गणा' ऐसा कहनेपर एक-एक अन्तर कृष्टि ही अनन्त सदृश धनवाले परमाणुसमूहसे आरम्भ की गयी एक-एक वर्गणा है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। और उनका समूह वर्गणासमूह कहा जाता है। अतएव दूसरी संग्रह कृष्टिके समस्त वर्गणासमूहसे प्रथम संग्रह कृष्टिका समस्त वर्गणासमूह अपनी कृष्टिके आयामरूपसे परिच्छिन्न प्रमाणवाला होकर संख्यातगुणा है इस प्रकार यह यहाँपर सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है ।
२१४. 'विदियादो पुण तदिया' ऐसा कहनेपर क्रोधसंज्वलनकी दूसरी संग्रह कृष्टिकी सब वर्गणाओं से उसीकी तीसरी संग्रह कृष्टिका समस्त वर्गणासमूह विशेष अधिक है इस प्रकार सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है। विशेषका प्रमाण यहाँ द्रव्यके अनुसार ही पत्योपमके असंख्यातवें भागका प्रतिभागरूप है ऐसा ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार भाष्यगाथा के इस अवयवसमूह से क्रोधसंज्वलनकी तोनों संग्रह कृष्टियों के वर्गणा समूहका आलम्बन लेकर स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन किया। अब 'कमेण सेसा विसेसाहिया' ऐसा कहनेपर क्रमानुसार ही मान आदि तोनों संग्रह कृष्टियों सम्बन्धी प्रत्येक वर्गणासमूहका आलम्बन लेकर विशेष अधिकके क्रमसे स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिए। तत्पश्चात् परस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शेष कथन जिस प्रकार प्रथम भाष्यगाथामें किया है उसी प्रकार कथन करना 1 चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है । और इसीलिए प्रथम भाष्यगाथा के अनुसार हो इसकी विभाषा करनी चाहिए इस बातका कथन करते हुए आगे के सूत्रको कहते हैं
* अब इस भाष्यगाथाकी विभासा करते हैं ।
६२१५. यह सूत्र सुगम है ।
जिस प्रकार प्रदेशपुंजको अपेक्षा अल्पबहुत्वकी विभाषा अपेक्षा उसकी विभाषा करनी चाहिए ।
उसी प्रकार वर्गणासमूहकी