Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगढीए तदियमूलगाहाए तदियभासगाहा
२१६. जहा पदेसग्गमस्सियूण सत्याण परत्थाणप्पाबहुअं पढमभासगाहाए विहासिदं तहा चैव वग्गणग्गम हिकिच्च एत्थ वि विहासेयव्वं, पदेसप्याबहुआणुसारेणेव वग्गणप्पाबहुअस्स वि णाणतेण विणा पवृत्तिदंसणादो त्ति एसो एदस्स सुत्तरूप भावत्यो । एवं विदिद्यभासगाहाए विहासा समत्ता । संपहि तदिय भासगाहाए विहासणं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ
* एत्तो तदियाए भासगाहाए समुक्कित्तणा ।
२१७. सुगमं ।
* तं जहा ।
६ २१८. सुमं ।
(११९) जा हीणा अणुभागेणहिया सा वग्गणा पदेसग्गे ।
भागेणणंतिमेण दु अधिगा हीणा च बोद्धव्वा ॥ १७२॥
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$ २१९. एसा तदियभासगाहा बारसहं पि संगह किट्टीणं जहण्ण किट्टिमादि काढूण जावकरसकिट्टि ति जहाकममवद्विदाण मंतर किट्टीण मणंतरोवणिधाए पदेसग्गेण होणा हियभावगवेसण - मणा । संपहि एदिस्से अत्थो वुच्चदे । तं जहा -- 'जा होणा अणुभागेण ० ' जा वग्गणा अणुभागेण हीणा सा पदेसग्गेण अहिया होदि ति गाहापुण्वद्धे सुत्तत्थसंबंधो । तत्थ 'वग्गणा' त्ति वृत्ते जहण्णकिट्टीए सरिसधणिय सव्वपरमाणुसमूहो एगा आदिवगणा त्ति घेत्तव्वा । एवं विदियादिकिट्टीणं
$ २१६. जिस प्रकार प्रथम भाष्यगाथा द्वारा प्रदेशपुंज की अपेक्षा स्वस्थान और परस्थान अल्पबहुत्व की विभाषा की उसी प्रकार वर्गगासमूहका आलम्बन लेकर यहाँ पर भो विभाषा करनी चाहिए, क्योंकि प्रदेश- अल्पबहुत्व के अनुसार हो वर्गणा अल्पबहुत्वकी भो नानापनके बिना प्रवृत्ति देखी जाती है इस प्रकार यह इस सूत्र का भावार्थ है । इस प्रकार दूसरी भाष्यगाथाका विभाषा समाप्त हुई । अब तीसरी भाष्यप्राचाकी विभाषा करते हुए आगे के सूत्रप्रबन्धको कहते हैं
* अब आगे तीसरी भाष्यगाथाकी समुत्कीर्तना करते हैं ।
$ २१७. यह सूत्र सुगम है ।
वह जैसे ।
$ २१८. यह सूत्र सुगम है ।
- (११९) जो वर्गणा अनुभागकी अपेक्षा हीन है वह प्रदेशपुंजको अपेक्षा अधिक होती है । इस प्रकार इन वर्गणओंमेंसे प्रत्येक वर्गणा अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा अनन्तवें भागसे होन या अधिक जाननी चाहिए ॥ १७२ ॥
$ २१९. यह तीसरी भाष्यगाथा बारह ही संग्रह कृष्टियोंमेंसे जघन्य कृष्टिसे लेकर उत्कृष्ट कृष्टि प्राप्त होने तक यथाक्रम अवस्थित अन्तर कृष्टिमोंकी अनन्तरोपनिधा के अनुसार प्रदेशपुंजकी अपेक्षा होनाधिकभावकी गवेषणा करनेके लिए अवतीर्ण हुई है । अब इसका अर्थ कहते हैं । वह जैसे - 'जा होणा अणुभागेण ० ' जो वर्गणा अनुभागकी अपेक्षा हीन है वह प्रदेशपुंज की अपेक्षा अधिक होती है इस प्रकार गाथाके पूर्वार्ध में सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध है । उसमें 'वर्गणा' ऐसा कहनेपर जघन्य कृष्टिमें सदृश धनवाला समस्त परमाणुसमूहरूप एक आदि वर्गणा है ऐसा ग्रहण करना चाहिए । इसी प्रकार द्वितीयादि कृष्टियोंकी अपेक्षा भी अपनीअपनी कृष्टिके सदृश घनवाले परमाणुओंकी एक पंक्ति में रचना करके उत्कृष्ट कृष्टिके प्राप्त होने