Book Title: Kasaypahudam Part 15
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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खवगढीए किट्टी वेदणकाले कम्मबन्ध-संतपरूवणा
$ १०६. किट्टीकरणद्धाए णिट्टिदाए तदणंतरसमए चैव विदियट्ठिदोदो ओोकड्डियूण किट्टीओ उदयावलियन्तरं पवेसेदि, अण्णहा विदियट्ठिदिसमवट्टिदाणं तासि वेदगभावाणुववत्तदो । एदम्मि समए पढमट्ठिदिसेसमावलियपमाणं होदि, कालपहाणत्ते विवक्खिये तहोवलंभादो । णिसेगपहाणत्ते पुण समयूणावलियमेत्ती होदि, उदयावलियपढमणिसेयस्स त्थिवुक्कसंकमेण तक्कालमेव किट्टी सरूवेण परिणदत्तादो ।
* ताधे संजलणाणं द्विदिबंधो चत्तारि मासा |
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६१०७ पुब्विल्लसमए द्विदिबंधपमाणं चत्तारि मासा अंतोमुहुत्तम्भहिया । एहि पुण ततो अंतोमुत्तमोसरियूण ऊष्णं द्विदिबंधं कुणमाणस्स संजलणाणं द्विविबंधो संपुष्णचत्तारिमासमेत संजादोत्ति सुत्तत्यसमुच्चओ ।
* द्विदिसतकम्मम बस्साणि ।
१०८. पुब्बिल्लसमए अंतोमृहुत्तम्भहियअटुवस्सपमाणं द्विदिसंतकम्मं होण तत्थेव ट्ठिविखंडयचरिमफालीए अंतोमुहुत्तपमाणाए णिवदिवाए एण्हिमद्ववस्समेतं संजलणाणं द्विदिसंतकम्मं जादमिदि वृत्तं होइ ।
* तिन्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधा द्विदिसंतकम्मं च संखेजाणि वस्ससहस्साणि ।
१०६. कृष्टिकरणकालके समाप्त होनेपर तदनन्तर समय में ही द्वितीय स्थितिमेंसे अपकर्षित कर कृष्टियोंको उदयावलिमें प्रवेश कराता है, अन्यथा द्वितीय स्थिति में अवस्थित हुई उनका वेदकपना नहीं बन सकता है । इस समय प्रथम स्थिति शेष आवलिप्रमाण होती है, क्योंकि कालकी प्रधानताकी विवक्षा करनेपर इसकी उस प्रकारसे उपलब्धि होती है । परन्तु निषेकोंकी प्रधानता में एक समय कम आवलि प्रमाण होती है, क्योंकि उदयावलिका प्रथम निषेक स्तिक संक्रमण के द्वारा उसी समय कृष्टिरूपसे परिणत हो जाता है ।
विशेषार्थं - जिस समय क्रोध संज्वलनको एक आवलि प्रमाण प्रथम स्थिति शेष रहती है उसी समय कृष्टिकरणका काल समाप्त होता है और अगले समय में जब द्वितीय स्थिति में से अपकर्षित होकर कृष्टियाँ उदयावलिमें प्रवेश करती हैं तब वह कृष्टियों का वेदन काल है । उस समय यद्यपि प्रथम स्थिति कालकी अपेक्षा एक आवलि प्रमाण अवश्य है पर उदयावलिका जो प्रथम निषेक है वह द्वितीय स्थिति में से अपकर्षित हुई कृष्टिका सम्बन्धी न होकर स्तिवुक संक्रमद्वारा निष्पन्न हुआ है, अतः कृष्टियोंके वेदन कालके प्रथम समय में निषेकोंकी प्रधानता कृष्टियों की प्रथम स्थिति एक समय कम एक आवलि प्रमाण हो बनती है ।
* उस समय संज्वलनोंका स्थितिबन्ध चार माह प्रमाण होता है ।
१०७. पिछले समय में स्थितिबन्धका प्रमाण अन्तर्मुहूतं अधिक चार माह था । परन्तु इस समय उसमें से अन्तर्मुहूर्तं कम करके अन्य स्थितिबन्ध करनेवाले जीव के संज्वलनोंका स्थितिबन्ध सम्पूर्ण चार माह प्रमाण हो जाता है यह इस सूत्रका समुच्चयरूप अर्थ है ।
* स्थिति सत्कर्म आठ वर्ष प्रमाण है ।
$ १०८. क्योंकि पिछले समय में अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षं प्रमाण स्थिति सत्कर्म होकर उसी समय स्थितिकाण्डककी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अन्तिम फालिका पतन हो जाने पर इस समय वनों का स्थिति सत्कर्म आठ वर्ष प्रमाण हो जाता है ।
* तीन घातिकमा स्थितिबन्ध और स्थितिसत्कर्म संख्यात हजार वर्ष प्रमाण है ।