________________ (7) क्रान्तिकारी सिद्ध हुआ। श्रीमद् की इस टीका में कथाएँ तो हैं ही, उसके साथ ही विचार भी हैं, ऐसे विचार जो जीवन को जड़-मूल से बदल डालने का सामर्थ्य रखते हैं। आरम्भ से ही श्रीमद् का बल स्वाध्याय पर था। यति-क्रान्ति के "कलमनामे" में नवीं कलम स्वाध्याय से ही संबंधित है। उन्होंने सदैव यही चाहा कि जैन साधुसाध्वियों और श्रावक-श्राविकाएँ स्वाध्याय की ओर प्रवृत्त हों, अतः विद्वानों के लिए तो उन्होंने "अभिधान-राजेन्द्र" कोश तथा "पाइयसबुहि" जैसी कृतियों की रचना की और श्रावक-श्राविकाओं के लिए 'कल्पसूत्र' की बालावबोध टीका जैसी सरल किन्तु क्रान्तिकारी कृतियाँ लिखीं। ज्ञान के एक प्रबल पक्षधर के रूप में उन्होंने कहा : "एमज केटलाएक विवाहादिकमां वरराजाने पहेरवा माटे कोइ मांगवा आवशे तो जरूर आपवा पडशे। एवो संकल्प करीने नवनवा प्रकारना सोना-रूपा हीरा-मोती आदिकना आभूषणो घडावी राखे छे, तथा वस्त्रोना वागा सीवरावी राखे छे, तेम कोइने भणवा वांचवाने माटे ज्ञानना भंडारो करी राखवामां शं हरकत आवी नडे छे? पण एवी बुद्धि तो भाग्येज आवे।" (प्र.पृ. 15) / उक्त अंश का अंतिम वाक्य एक चुनौती है। श्रीमद् ने इन अप्रमत्त चुनौतियों के पालनों में क्रान्ति-शिशु का लालन-पालन किया। उन्होंने पंगतों में होने वाले व्यर्थ के व्यय का भी विरोध किया और लोगों को ज्ञानोपकरणों को सञ्चित करने तथा अन्यों को वितरण करने की दिशा में प्रवृत्त किया; इसीलिए धार्मिक रूढ़ियों के उस युग में 'कल्पसूत्र' के छापे जाने की पहल स्वयं में ही एक बड़ा विद्रोही और क्रान्तिकारी कदम था। इसे छाप कर तत्कालीन जैन समाज ने न केवल अभूतपूर्व साहस का परिचय दिया वरन् आने वाली पीढ़ियों के लिए आधुनिकता के द्वार भी खोल दिए। सभी जानते हैं, "पर्युषण" जैनों का एक सर्वमान्य धर्म-पर्व है। इसे प्रायः सभी जैन सम्प्रदाय बड़ी श्रद्धाभक्तिपूर्वक मनाते हैं। पर्युषण के दिनों में दिगम्बरों में "मोक्षशास्त्र" और श्वेताम्बरों में "कल्पसूत्र" के वाचन की परम्परा है। "मोक्षशास्त्र" के दस और "कल्पसूत्र" के आठ वाचन होते हैं। "कल्पसूत्र" की बालावबोध टीका इस दृष्टि से परिवर्तन का एक अच्छा माध्यम साबित हुई। इसमें कई विषयों के साथ कुछेक ऐसे विषय भी हैं, जिनका आम आदमी से सीधा . सरोकार है। वाचक कैसा हो, वाचन की क्या विधि हो, शास्त्र-विनय का क्या स्वरूप हो; साधु कैसा हो, उसकी संहिता क्या हो, चर्या क्या हो इत्यादि कई विषय 'कल्पसूत्र' में सैद्धान्तिक और कथात्मक दोनों रूपों में आये हैं। असल में 'कल्पसूत्र' की यह टीका एक ऐसी कृति है, जिसे उपन्यास की उत्कण्ठा के साथ पढ़ा जा