Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
....[७
कल्पान्तर्वाच्यः ]
नागकेतुकथा सुलहा विहार-भूमी विथारभूमी य सुलह-सज्झाओ। सुलहा भिक्खा य जहिं जहण्णयं वासक्खित्तं तु॥७३॥ चउ-गुणोववेयं तु खित्तं होइ जहण्णयं । तेरस-गुणमुक्कोसं दुण्ह मज्झिमि मज्झिमगं॥७४ ॥ एवंविहंमि खित्ते ठाएयव्वं तु सब्ब-साहूहिं। संजम-पालण-हेउं वासावासं . जओ भणियं ॥७५॥ कामं तु सव्व-कालं पंचसु समिईसु होइ जइअव्वं ।
वासासु अहिगारो बहु-पाणा मेयणी जेणं ॥७६ ॥ अष्टमे नागकेतुः -
एयंमि य वर-पव्वे संपत्ते पवर-भाव-जुत्तेहिं।
अट्ठम तवं पगिळं कायव्वं नागकेउ व्व ॥७॥ तत्कथा....
चंदकंताभिहाणा नयरी तत्थथि विजयसेण निवो। सिरिकंतसिट्ठि-पवरो भज्जा से सिरिसही नामा॥७८॥ नागाईणुवजायणपुव्वं तेसिं तु पुत्तओ जाओ। पज्जोसवणापव्वं आसणं तत्थ से आसी॥७९॥ गिह-माणुसाण वत्तं सुच्चा सो बालओ सरइ जाई। अट्ठम तवं पगिण्हइ न रोवइ न पीयइ दुद्धं ।। ८०॥ सुकुमाल-भावओ पुण निचिट्ठो आसि तक्खणं चेव। सयणेहिं मओ नाउं भूमज्झे झत्ति संठविओ॥१॥ सिरिकतो सुय-मरणा मओ तया चलियमासणं नाउं । धरणिंदो पुव्वभवं नाउं तस्सेव चिंतेइ ॥५२॥ पुव्व-भवे वणिय-सुओ तस्स विमाया पओसमावण्णा। सम्मं नो पडितप्पइ सो कहइ नियय-मित्तस्स ।। ८३ ॥ सो बेइ कयं न तए तवाइ-पुण्णं अओवमाणमिणं। संपत्तं तुह तेणं करेहि किंची तवाइयं ॥८४ ॥ तो करइ चउत्थाइ माणवमाणं जहित्तु भावेण । पज्जोसवणा पव्वे काहिस्सं अट्ठमं च तवं ।। ८५॥

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132