Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 49
________________ ४० महावीरदीक्षा [कल्पान्तर्वाच्यः पडिसेहंति य पमया के तुब्भे इत्थ मा पवेसेह। ते बिति तुम्ह नाहा ते पगया वद्धमाण-पये॥ ४३६॥ ते सवहं कुव्वंति खग्गि-जणा वि य तहेव भासंति। इय दुल्लक्खा जाया जिणंद-दाण-प्पभावाओ॥४४०॥ पुट्ठो य पुणो भाया जिणेण वीरेण विगयमोहेण । तुह संतिओ य अवही पुण्णो गिण्हामि दिक्खमहं।।४४१॥ धय-हट्ट-सोह-चंदण-माला-मंचाइ-मंच-रमणिज्जं । कुंडग्गामं नगरं सुरलोयसमं कयं तइया ॥ ४४२॥ तो नंदिवद्धण-कय-कलसेसु दिव्व-भावओ पविट्ठा । सक्काइ-कया कलसा दिक्ख-महं कासि तह चेव ॥ ४४३ ॥ जाव य कुंडग्गामो जाव य देवाण भवण-आवासा । देवेहि य देवीहि य अविरहिय-संचरंतेहिं ।। ४४४ ॥ सिंहासणे निसणं सक्कीसाणेहिं दोहिं पासेहिं।। वीयंति चामरेहिं मणि-कणग-विचित्त-दंडेहिं ।। ४४५ ॥ पव्विं उक्खित्ता माणुसेहिं साहट्ट-रोम-कवेहिं। पच्छा वहति सीयं असुरिंद-सुरिंद-नागिंदा ॥ ४४६॥ चल-चवल-भूसणधरा सच्छंद-विउव्वियाहरणधारी। देविंद-दाणविंदा वहति सीयं जिणंदस्स ।। ४४७॥ कुसुमाणि पंच-वण्णाणि मुयंता दुंदुही य ताडंता। देवगणा य पहट्ठा समंतओ अच्छुय-गयणं ।। ४४८॥ वण खंडुव्व कुसुमियं पउम-सरों वा जहा सरय-काले । सोहइ कुसुम-भरेणं इय गयणयलं सुरगणेहिं ।। ४४६॥ अयसि-वणं व कुसुमियं कणयार-वणं च चंपयवणं वा। तिलयवणं व कुसुमियं इय गयणयलं सुरगणेहिं ।। ४५०॥ वर पडह-भेरी-झल्लरि-दुंदुहि-संखसएहिं तुरेहिं । धरणियले गयणयले तूरनिनाओ परम-रम्मो ॥ ४५१ ।। नायवणसंडपत्तो आभरणाइ विमुत्तु सयमेव। पंचमुट्ठियं च लोयं करेइ सामी पसत्थ-मणो॥ ४५२॥

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