Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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६६]
नेमिचरितम्
[ कल्पान्तर्वाच्यः हा! जायवकुलदिणयर! हा! निरुवम-निहाण! हा!।
जगस्सरण!। हा! करुणायर! सामी! मं मुत्तूणं कहं चलिओ? |७५६॥ सिवादेवी....
पत्थेमि जणणि-वच्छल ! वच्छ! तुमं पढमं पत्थणं किंपि। काऊण पाणिग्गहणं मह दंसे नियवहूवयणं ।।७६०॥ तो भणइ नेमिनाहो माय! इमं मुंच पत्थणं राओ।
नत्थित्थ माणुसीसु राओऽत्थि य मुत्ति-पमयाए॥७६१॥ राजी...
हा! हियय! धिट्ट ! निट्ठर! अज्ज वि निल्लज्ज ! जीवियं । वहसि ?! अण्णत्थ बद्धराओ जइ नाहो अप्पणो नाहो ॥७६२॥ सहीओ भणंति सहिय! पिम्म-रहियंमि पिम्म-करणं किं ?। पिम्मपरं किं पि वरं अण्णयरं ते करिस्सामो।।७६३ ॥ करेहिं पिहाय कण्णे भणइ राईमई असोयव्वं । तुम्हेहिं भासियं हा! न भासियव्वं परं किंचि ।।७६४॥ जइ वि हु एयस्स करे मज्झ करो नासि परिणयण-काले। • तह वि सिरे मह सुच्चिय दिक्खासमये करो होही ॥७६५।। जइ कहवि पच्छिमाए उदयं पावेइ दिणयरो कइया । मुत्तूण नेमिनाहं करेमि नाहं वरं अण्णं ।।७६६॥ पभणइ समुद्दविजयो पूरेहि वच्छ! मणोरहे अम्हं। नाभेयाइ-जिणिंदा मुत्तिं पत्ता कयविवाहा ।। ७६७॥ .. एगत्थि संगहे खलु बहुजीवसंघाय घायए ताय!।। तुम्हं विवाह-कज्जे नो जुत्तो आग्गहो एसो॥७६८॥ एयंमि खणे पत्ता लोगंतिय सुरा. जिणिंद-पासंमि। विण्णत्तिं कुव्वंति भयवं तित्थं पवत्तेहि ।।७६६ ॥
___ इति श्री नेमि–चरित्रम् ॥ तं चेव सव्वं जाव देवा देवीओ य वसुहारवासं वासिंसु, सेसं तहेव चारगसोहण-माणुम्माणवद्धणउस्सुक्क-माइय-ट्ठिइवडिय-जूयवज्जं सव्वं भाणिअव्वं ॥२०६॥

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