Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 98
________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] फलश्रतिः तो सा गुरुणी पाए पडिया खामेइ भावओ जाव। ता गुरुणीए निद्दा समागया तंमि समयंमि ।। १०३३ ॥ ता सुहज्झाण-वसाओ उप्पण्णं केवलं मिगावइए। सप्पं पिक्खइ इंतं गुरुणी-करं ठवइ संथारे ॥१०३४॥ तो जागरिया गुरुणी पुढं मे चालिओ करो केणं। सामिणि! सप्प-भया मे चालिओ कह तुमं जाणे? ॥१०३५॥ को ऽस्थि अइसओ तो हंता! सामिणि! तुह पसायाओ। पडिवाइ अपडिवाइ य? अप्पडिवाइ ति सा भणइ ।। १०३६ ।। आउट्टा खामेइ सुहज्झाणेणऽज्जचंदणाए वि। उप्पणं णाण-वरं संपत्ता दो वि मुक्खपयं ।। १०३७॥ एवं खामेयव्वं परेहिं तह अप्पणा य खमियव्वं । नियधम्म-रक्खणट्ठा पहाणबुद्धीहिं विबुहेहिं ।। १०३८॥ कालिग-सुरीण कहा...तो गुरु-पट्टावली कहेयव्वा । अच्छाएइ तरणिं रेणू-वाउस्स विफुरियं ।।१०३६॥ अथ गुरुप्रसाद-वर्णनम्... भेगो चुंबइ वयणं जं नागस्सेह तं बलं जाण। मंतिवाइस्स नूणं अहवा तं ओसही तेयं ।। १०४०॥ कूयइ वसंत-मासे कलय-रवं तत्थ कारणं जाण। सहगार-मंजरीए पवर-बुद्धिप्पयायाए॥१०४१॥ साहामियस्स साहाया साहं गंतुं परक्कमो। न जोयण-सयं गंतुं सक्कोब्भाससयेहि वि॥१०४२॥ तहाविहो सत्थ-परिस्समो मे नेवत्थि जडं च तहा पगामं । तहावि जं पुच्छग-वायणाए पवत्तितं मे गुरु-पारतंतं ॥१०४३॥ . उपजातिः पंडित्तं नेवत्थि किंपि ममं विबुह-मण-चमक्कयरं । वयणवर-कोसलत्तं अण्णो वा गुण-विसेसो य॥ १०४४ ।। १२.

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