Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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[कल्पान्तर्वाच्यः
वज्रस्वामी सा उब्विग्गा चिट्ठइ गोयर-समये गुरूहिं वागरियं। सच्चित्तं अच्चित्तं जं मिलइ तं गहेअव्वं ।। ६४७॥ पत्तं धणगिरि-साहू द8 तस्सेव अप्पइ बालं । लोयसमक्खं गंदा गहिओ तेण वि सो बालो।। ६४८॥ वजमिव भार-जुत्तो दत्तं वज ति नाम सुगुरुहिं। सिज्जायरीहिं वड्डइ लालिज्जंतो समणि-गेहे ।। ६४६॥ पालण-सुत्तो अंगे एगारस पढइ छम्मासवयकंखी। तिवासिओ य संघं मण्णइ गुरु-वेस-गहणेणं ।। ६५०।। सावहि-विंटलियं मंडित्ता जो पढावइ साहू। राय-समक्ख-विवाए जाए माया वि पडिबुद्धा ।। ६५१ ॥ उज्जेणीए जो जंभगेहिं पहाण-कोलह-सुपक्क-भिक्खाए। सुरपिंडु त्ति न गहिओ विक्किय-लद्धी तओ पत्ता ।। ६५२ ।। घेबरपूर-परिक्खा कया पुव्वमित्त-जंभियसुरेहि। नो खुद्धो तो पुणरवि दत्ता तेहिं नभोविज्जा ।। ६५३ ।। जस्स अणुण्णाए वायगत्तणे दसपुरंमि नयरंमि। देवेहिं कया महिमा पयाणुसारिं नमसामि ।। ६५४ ।। जो कण्णाइ धणेण य निमंतिओ जोव्वर्णमि गिहिवइणा। नयरंमि कुसुम-नामे तं वयररिसिं नमसामि ।। ६५५ ॥ उत्तर-दिसि दुब्भिक्खे जाए संघं पडे ठवेऊणं। । चारिग्गहणट्ठ गओ सो वि सिज्जायरो खिन्नो ॥६५६ ॥ संपत्तो वजगुरू पुरि सुभिक्खं च तत्थ बुद्धेणं। • रण्णा जिणगिहपुप्फे निवारिए संघ-चिंता य।।६५७॥ पज्जूसवणा-पव्वे लाभं नाऊण वज्जसूरीहिं। माहेसरी हुयासण-देवस्स वर्णमि पत्तेहिं ।। ६५८ ॥ पुप्फाण वीस लक्खा सिरिदेवी-अप्पियं महापउमं । वेउब्विय-विमाणं गिण्हित्ता हुयसण-वणाओ ।। ६५६ ॥ जंभिय-सुर-कय-ओच्छव-पुव्वं आगम्म तित्थ माहप्पं । वद्धारेइ ताहे सो राया सावओ जाओ।। ६६०॥

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