Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 80
________________ [७१ कल्पान्तर्वाच्यः । ऋषभदेवस्य केवलज्ञानम् हट्टेहिं लोएहिं भणियं कहं जाणसि कुमार! तुमं। तो सेयंसो पभणइ पुवठ्ठ-भवाइ-बुत्तंतं ।। ८२२॥ विहरंतो संपत्तो तक्खसिलासण्ण-वर्णमि संझाए। उज्जाण-पालगाओ विण्णायं सामि-आगमणं ।। ८२३ ।। कलं सविड्डिए पूइस्सामि ति चिंतिउं जाइ। कल्ले जा तत्थ सामिं अपासमाणो कुणइ खेयं ॥ ८२४ ॥ वंदित्ता जिणपाए धम्मचकं च ठावइ तत्थ वरं। भयवं विहरइ गामाणुगामं सुहज्झाणसंजुत्तो॥२५॥ वास-सहस्सं उग्गं तवमाइगरस्स आयरंतस्स। जो किर पमाय-कालो अहोरत्तं ही संकलिओ॥२६॥ विणीयाइ साहा-पुर-पुरिमतालंमि नाणमुप्पण्णं । जमग-समगेहिं भरहो पमोइओ नाण-चक्केहिं ।। ८२७॥ पूयावसरे सरिसो दिवो चक्कस्स तं पि भरहेणं । विसमा हु विसय-तण्हा गुरुयाण वि कुणइ मइमोहं ।। ८२८॥ तायंमि पूइए चक्कं पि पूइयं पूयणारिहो ताओ। इहलोइयं तु चक्कं परलोय-सुहावहो ताओ॥ ८२६॥ मरुदेवाए सहिओ गयमारूढो निगच्छइ भरहो । जा देवज्झुणि-दुंदुहि-देसणं सुणइ मरुदेवा ।। ८३०॥ सुच्चा जिणवर-महिमं हरिसागय-लोयणंसु परिगलियं। नील-पडलं च तीए ता पिच्छइ समवसरणाइ।। ८३१॥ धी धी सिणेह-करणं सद्धिं जीवाण मोह-वसगाणं । जमहं दुक्खं पत्ता पुत्तो भुंजइ इमं रिद्धिं ।। ८३२॥ जाणेऽहं मह पुत्तो कह सीयायव-पवास-वणवासो। निरवसणो गिरिकंदर-ठिओ गमेइ य किर कालं ।। ८३३॥ एरिसिमिड्डिं पत्तो मम नाम पि य न पुच्छइ कइया । तह मम दुक्खं न मुणइ अस्स अहो वीयरागत्तं ॥ ८३४ ।। एगत्तभावणाए खणेण पत्ता तओ सुहज्झाणा। संपत्त-केवल-सिरी सिद्धिं पत्ता य मरुदेवा ।। ८३५॥

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