Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 50
________________ दीक्षा . [ ४१ कल्पान्तर्वाच्यः ] दिव्वो माणुस-घोसो तूर-निनाओ य सक्क-वयणेणं । खिप्पामेव निलुक्को जाहे पडिवजइ चरित्तं ॥ ४५३॥ काऊण नमुक्कारं सिद्धाणमभिग्गहं तु सो गिण्हे । सव्वं मे अकरणिज्जं पावं ति चरित्तमारूढो ।। ४५४ ॥ सामाइयं करेइ सामी सावज-जोग-वज्जणयं। भंते ति य नो पभणइ सयं तहा कप्प-जोगाओ॥ ४५५॥ उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता छठेणं भत्तेणं अपाणहणं दत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगे अबीये मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए॥ सूत्र ११६ ॥ सक्काइया देवा भयवंतं वंदिउं सपरितोसा। कय-नंदीसर-जत्ता निय निय ठाणाई संपत्ता॥ ४५६ ॥ वीरो वि बंधुवगं आपुच्छिउँ पत्थिओ विहारेणं । सो विय विसन्न-चित्तो वंदिय वीरं पडिनियत्तो।। ४५७।। दिवसे मुहत्त-सेसे कम्मारग्गामपवरमणुपत्तो। रयणीइ तत्थ सामी पडिमाइ ठिओ य निक्कंपो॥ ४५८ ॥ गोव निमित्तं सक्कस्स आगमो वागरेइ देविंदो। कुल्लाग-बहुल-विप्पस्स पारणे पयस वसुहारा ।। ४५६॥ गोवो सव्वं दिवसं वसहे वाहित्तु संझसमयंमि । मुत्तुं सामि-सगासे गोदोहट्ठा गओ सगिहं ।। ४६०॥ ते चरिउं वणगहणे गया य सो आगओ न ते पासे । भमइ स रत्तिं वसहा सूरुदये तत्थ संपत्ता॥ ४६१॥ सो आगओ पदटुं रुट्ठो धावइ जिणस्स वहणट्ठा। ता सक्को वारेइ ससेल्लगं तं तया गोवं ॥ ४६२ ॥ उवसग्ग-बहुलत्तं दटुं सक्को भणेइ सामिस्स। तुब्धं वेयावच्चं करेमि तो भणइ जिणनाहो ॥ ४६३ ॥

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