Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 66
________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] महावीरनिर्माणम् हा ! हा! किं वीर ! कयं इमंमि समयंमि जं कओ दूरे । किमाडयं मंडित्ता बालुव्व अंचलि-लिगिस्सं ? ।। ६४७ ॥ किं केवल - भागमह मग्गिस्सं ? अहव कित्तम - सिणेहो । तव भारो वाऽभूवं हा ! हा! विस्सारिओ तेण ॥ ६४८ ॥ कस्सग्गे संदेहे पुच्छिरसामि त्तिविलवइ एवं । हुं हुं नायं नायं असिणेहा वीयरागा य ।। ६४६ ॥ इय झायंतो पत्तो एगत्त-भावणं तह य सुहज्झाणं । पावइ केवलनाणं केवल -महिमं कुणइ इंदो ॥ ६५० ॥ मुक्ख - मग्ग-पवण्णाणं सिणेहो वज्रसंखला । वीरे जीवंतए जाओ गोयमो जंण केवली । ६५१ ।। [ ५७ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे तीसं वासाई अगार-वास - मज्झे वसित्ता, साइरेगाई दुवालस वासाइं छउमत्त-परियागं पाउणित्ता, देसूणाई तीसं वासाई केवलि-परियागं पाउणित्ता, बायालीसं वासाई सामण्ण-परियागं पाउणित्ता, बावत्तरिं वासाइं सव्वाउयं पालइत्ता, खीणे वेणीज्जाउय-नाम-गुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दुसम - सुसमाए समाए बहुविइक्कंताए तीहिं वासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसेहिं पावाए मज्झिए हत्थिवालस्स रणो रज्जुगसभाए एगे अबीए छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं साइणा नक्खत्तेणं जोगमुवागणं पच्चस - काल समयंसि संपलियंक - निसण्णे पणपण्णं अज्झयणाई कल्लाण-फल-विवागाइं पणपण्णं अज्झयणाई पाव - फल- विवागाई, छत्तीसं च अपु-वागरणाई वागरित्ता पहाणं नाम अज्झयणं विभावेमाणे विभावेमाणे कालगए विइक्कंते समुज्जाए छिण्ण-जाइ - जरा मरणबंधणे सिद्धे बुद्धे अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे ॥ १४७ ॥ सामिणो मोक्ख-समयं वियाणित्ता सुरेसरगणेसा । आसण-पकंपणाओ समागया तत्थ सव्वेऽवि ॥ ६५२ ॥ इत्थंतरंमि सक्को अंसुय - पुण्णच्छिओ भणइ एवं । तीसइमो भस्स - गहो दो-वास - सहस्स-ठिइओ य ॥ ६५३ ॥

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