Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 71
________________ [ कल्पान्तर्वाच्यः नेमिनाथचरितम् अण्णंमि दिणे पत्तो स वासुदेवस्स जाणसालाए। कीलंतो कुमर-जुओ चकं दिटुं तहिं पढमं ।।७०३ ॥ जाव य गहेइ हत्थे ता वारइ जाणसालिओ भयवं । कण्हं विणा न सक्को कोऽवि हु उप्पाडिउं एयं ।। ७०४ ॥ कोउयओ सिरिनेमी अंगुलियग्गे तयं गहेऊणं। भामेइ य पहठ्ठो कुलाल-चक्क व्व जिणनाहो ।।७०५॥ चावं मिणाल व दलं जेण सयं नामियं सलीलाए। कोमोयगी य सुगया जिट्ठिव्वोप्पाडिया जेण ।। ७०६॥ नियबाहुतरुवरंमि य साहसिरिं पाविया भमाडित्ता। संका-रहियेण तया अणंतबलजुत्तएणं च ।।७०७ ।। : तो संखं पुरेउं जा गिण्हइ जिणवरो निवारेइ । सो जाणसालिओ वि हु सामी रक्खेहि माहप्पं ।। ७०८ ॥ अइकट्ठणं कण्हो पूरेइ महब्बलो वि जं एयं। ता कह तुमं तु बालो होसि समत्थो/ य पुरेउं ।। ७०६॥ तो लीलाए गहिओ पवाइओ तह य सामिणा सिग्धं । तस्सऽभिनाएण तओ भग्ग-खंभा गया नट्ठा॥७१०॥ उबंधणा य तसिया हयवरा कंपियाधरा विहुरा। बहिरं विस्सं जायं जाया चिंता बल-हरीणं ।।७११॥ चलिया य सेलनाहा विचलिय-निलया य भीइभीया य। तिसिया देविंदा वि हु मुच्छियं जायविंदेहिं ।।७१२॥ एवं चक्क-गया-धणु-संखाणं विलसियं वियाणित्ता। जा चिटुंति हरि-बला कीलंतो आगओ नेमी।।७१३॥ कण्हो निय-उच्छंगे विनिवेसित्ता य नेमिकमरवरं। पुच्छए तुमए भाउय! किं विहियं चक्क-भमणाइ ? ।।७१४ ॥ आमं मए य विहियं ताहे चिंतेइ संकिओ कण्हो। किं एसो चक्क-हरी उप्पण्णो अभिनवो नूणं ॥७१५॥ स-गोरवं पयंपइ संखमिमं पूरिउं न कोवि खमो। मं मुत्तूण भाउय! अहो! बलं उत्तमं तुज्झ ।।७१६॥

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