Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 69
________________ ६० ] पार्श्वनाथचरितम् [ कल्पान्तर्वाच्यः निय-पुरिसेहिं कुंडा कटुं आगरिसियं दुहा य कयं। जा ता तम्मज्झाओ निग्गओ विह्वलो सप्पो॥६८१॥ दावेइ य नवकारं निय-पुरिसेहिं च तस्स सो भयवं। जिण-दंसण नवकारप्पभावओ आसि धरणिंदो॥६८२॥ अहो नाणं कुमारस्स अहो बुद्धी अहो कला। एवं थुओ जणोहेहिं गिहं सामी गओ तओ॥६८३॥ विसेसा जायए माणो कहूँ किच्चा विसेसओ। . जाओ भवणवासीसु मेघमाली सुरो तया ।। ६८४ ।। पासे णं अरहा पुरिसादाणीए तेसीइं राइंदियाइं निच्चं वोसढकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पजंति, तं जहा दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्ख-जोणिआ वा, अणुलोमा वा पडिलोमा वा, ते समुप्पण्णे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥ सूत्र १५८॥ दिक्खं पडिवज्जित्ता विहरमाणो य अण्णया भयवं। तवसि-गिहासण्ण-कूव-निग्गोह-मूले ठिओ पडिमं ।। ६८५॥ इत्थंतरंमि देवो अमरिसंधो समागओ तत्थ। जिणवरमुवद्दवणत्यं विउब्विया तेण वेयाला ।। ६८६॥ सर्ल-विच्छिया वि य तेहिं न खुद्धो जया य सो सामी। ताहे मेह-समूहे विउव्वइ काल-वण्णाभे ॥ ६८७।। वरिसंतेहिं तेहिं चडियं नीरं जिणस्स जा नासं । इत्थंतरंमि चलियं धरणिंदस्सासणं सिग्धं ॥ ६८८ ॥ आगच्छइ य तुरंतो जिणवर-पासंमि धरइ फणच्छत्तं । अह सिंघासण-मंडिय अग्गे रंभा पणचंति ॥ ६८६॥ ओहीए पासित्ता वरिसंतं मेघमालिणं देवं। रोसेण धमधमंतो हक्कारेइ य धरणिंदो॥६६०॥ रे! दुट्ठ! किमारलु अयाणमाणेण जिणवरिंदस्स। पुव्वं दत्तोऽणेण हिओवएसो न ते रुइओ॥६६१॥ ऊसर-पुढवीए जहा जायइ लवणा य मिट्ठमवि वारि। सामिस्स सेवगोऽहं अओ परं नो सहिस्सामि ॥ ६६२।।

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