Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
View full book text
________________
कल्पान्तर्वाच्यः ]
पार्श्वनाथचरितम् पुप्फाइ पुप्फ-हत्थे य नच्चा तं चलियो पहू। कोउगा तत्थ संपत्तो पासइ कठ [कमठ तावसं ।। ६६७॥ पंचग्गि-कट्ठ-कुव्वंतं संबोहइ जिणेसरो। अहो अण्णाणमण्णाणं तत्तं जाणासि नो तुमं ।। ६६८॥ दया नत्थि तवे जम्मि सो तवो उ निरत्थओ। विणा जलं नई चंदं निसा वासं विणा घणं ॥ ६६६॥ न सोहंते जहा एए तहा धम्मो दयं विणा। किवा नई महातीरे सव्वे धम्म-तणंकुरा ।। ६७०॥ तीए सोसमवेयाए नंदंति कह ते चिरं?। अहो! तवस्सि! तं मूढ ! धम्मतनं न याणसि ।। ६७१ ।। महारंभ-रओ इत्थं कहें किं कुणसि मुहा । सव्वे वेया न कुव्वंति सव्वे जण्णा य भारय!॥ ६७२ ॥ सव्वे तित्थाभिसेया य ज कुजा पाणिणं दया। जो देइ गो-सहस्साणि अओ जीव-दया वरो।। ६७३ ।। कविलाणं सहस्सं तु जो दियाण पयच्छइ।
एगस्स जीवियं दिज्जा कलं नग्घइ सोलसं ।। ६७४ ।। .. हेम-धेणु-धराईणं दायारो सुलहा भुवि ।
दुल्लहो पुरिसो लोए जो जीवाभय दायगो।। ६७५ ।। एगओ जण्णया सव्वे समग्ग-वर-दक्खिणा। एगओ भय-भीयस्स पाणिणो पाण-रक्खणं ।। ६७६ ॥ जूया मंकुण डंसादि जे पाणी तणु पीडए। पुत्तु व्व परिरक्खंति ते नरा सग्ग-गामिणो ॥६७७॥ भो! भो! तावस! एवं अण्णाण कटुं पकुव्वमाणो य। धम्मस्स लेसमवि तं न याणसि सव्वहा Yणं ।। ६७८॥ छाय-तवाणमंतर-मुजोयंधारयाण जा च इयं । जीव-दया-हिंसाणं अंतरं तत्तियं जाण ।। ६७६ ॥ इय सुच्चा भणइ कठो जाणंति रायपुत्तया सव्वे । गयमाइ-कीलावण ममारिसा तावसा धम्मं ।। ६८०॥

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132