Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 48
________________ कल्पान्तर्वाच्यः । देवानां स्तवः [ ३६ एवं चिट्ठइ भयवं जाया पुव्वं व एरिसा पसिद्धी। जह एसो चक्कवई चउदस-सुमिणेण भविस्सइ य॥ ४२६॥ सेणिय-चंडपज्जोया उदओ य पियरेहिं पेसिया जत्थ। नो एस चक्कवट्टी निय-निय-ठाणं गया तेऽवि ॥ ४३०॥ समणे भगवं महावीरे दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे आलीणे भद्दए विणीए नाए नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसूमाले, तीसं वासाई विदेहंसि कट्टु अम्मापिऊहिं देवत्तगएहिं गुरुमहत्तरएहिं अब्भण्णुण्णाए समत्त-पइण्णे पुणरवि लोगंतिएहिं जीअकप्पिएहिं देवेहिं ताहिं इट्टाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगलाहिं मियमहुर सस्सिरीआहिं दिअयगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं गंभीराहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गूहि अणवरयं अभिनंदमाणा य अभिथुव्वमाणा य एवं वयासी ॥ सूत्र ११० ॥ सारस्सयमाईच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य। तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्या चेव रिट्ठा य॥ ४३१॥ एए देव-निकाया भयवं बोहंति जिणवरिंदं तु। सव्व-जग-जीव-हिययं भयवं तित्थं पवत्तेहि ।। ४३२॥ संवच्छरेण होही अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदाणं। तो अत्थ-संपयाणं पवत्तए पुव्व-सूरंमि ।। ४३३॥ एगा हिरण्ण-कोडी अटेवय-अणूणगा सय-सहस्सा। सूरोदय-माइयं दिज्जइ जा पायरासाओ।। ४३४ ॥ वरद वरं वरद वरं इय घोसिज्जइ महंत-सद्देणं । पुर-तिय-चउक्क-चच्चरे रत्था-रायपहाइसु ।। ४३५॥ जो जं वरेइ तं तस्स दिज्जइ हेम-वत्थ-वाइयं । वियरंति तत्थ तियसा सक्काएसेण सव्वंपि॥ ४३६॥ तिण्णेव य कोडि-सया अठ्ठासीइं च हुंति कोडीओ। असीइं च सयसहस्सा एवं संवच्छरे दिण्णं ।। ४३७॥ वच्छर-दाण-पवुट्ठी विरमिय-दारिद्द-दवानला तह य।। जायगा-जणा य पत्ता सगिहे वरवेससंजुत्ता ।। ४३८॥

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