Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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[ ४५
कल्पान्तर्वाच्यः ]
दश स्वप्राः सामी सुहज्झाणाओ नो खुहिओ किंपि सो य पडिबुद्धो। रत्तिंते अंतमुहु निद्दा-वसओ य दस सुमिणे ।। ५०१॥ पासइ पढमे पहओ तालपिसाओ य सेय चित्ते य। दो कोयले य सामी दाम-दुगं तहय गो-वग्गो।। ५०२।। सेविजमाणओ मे पउम-सरं सायरो मए तिण्णो। दिप्पंतमक्कबिंबं आरूढो मेरु-सिहरंमि ।। ५०३ ॥ अंतेहि माणुसोत्तर-नगो मए वेढिओ य तेसि फलं । नेमित्तिओ पभाए इंदसम्मो भणइ एवं ।। ५०४॥ तालपिसाओ पहओ जं तं मोहं हणिस्ससि नूणं । जं सेय-कोगिलो तं सुक्कं झाणं च झाएसि ॥५०५॥ जं चित्त-कोइलो वि य दुवालसंगी भविस्सइ तुम्हं । गोवग्गा तुह भावी चउव्विहो पवर-संघो य॥५०६ ॥ पउम-सरा देव-गणो सेवओ सागरा भव-समुद्दो। तरिहिसि केवलनाणं लहिस्ससि अक्क-बिंबाओ॥५०७॥ मंदर-सिहरारोहणमिह सिंहासण-गओ य धम्मकहो। अंतेहिं नगवेढा स-पयावं ते जसो भावी॥ ५०८॥ जं दाम-दुगस्स फलं नो जाणे सामिओ सयं भणइ । मुणि-सावग-भेएणं दुविहं धम्मं कहिस्सामि ॥ ५०६॥ तो मोरागे पत्तो पासंड अच्छदलओ तत्थ । सिद्धत्थो जिण-वयणे भासइ लोयाण य निमित्तं ॥ ५१०॥ पासंडी ईसाल तिणं गहित्ता य आगओ तत्थ। भंगाऽभंग-पसिणे नो भंगे छेत्तुमारखो। ५११॥ वजमयं तं कुणइ सक्को तो सो विलक्खओ जाओ। तो सामी विण्णविओ सेवंबीयाए गंतुमणो॥५१२॥ लोएहिं वारिओ इह दिद्विविसीकारणं च लाभत्थं । जिणनाही संपत्तो तब्बिल-पासे ठिओ पडिमं ॥ ५१३ ॥ सो पुव्व-भवे आसी खवओ (तविओ) खुल्लेण जाइ पिंडत्थं । मंडूकी-वह-कहणा रुट्ठो देवो तओ जाओ॥ ५१४॥

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