Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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कल्पान्तर्वाच्यः ]
. सोमवृत्तान्तः । सो पुण दाणावसरे जिणस्स देसंतरे गओ आसी। लाभत्थमेव रहिओ भजाए आगओ संतो।। ४७५॥ एवं जिणेण दिण्णं जणस्स धणक्कए तुम देसे। तो निल्लक्खण! अज्ज वि गंतूण तमेव मग्गेसु ।। ४७६॥ भणियं च तेण भयवं! दीणो हं दुत्थिओ अभग्गो हं। मग्गंत-भमंतस्स य न किंचि मे सामि! संपडइ ॥ ४७७॥ किं किं न कयं को को न पत्थिओ कह कह न नामियं सीसं । दुब्भर-उयरस्स कए किं न कयं किंन कायव्वं ? ।। ४७८ ॥ दिण्णं य तए दाणं सव्वस्स जहच्छियं चिरं कालं। नासि तया इत्थाऽहं ता सामि! करेह कारुण्णं ।। ४७६ ॥ देसु मह किंचि दाणं सव्वस्स जीवस्स तं सि कारुणिओ। इय विण्णत्तो भयवं करुणिक्करसाणुकंपो ‘य॥ ४८०॥ वियरइ सुरदूसद्धं अण्णं मह नत्थि किंचि जं भणियं। सो वि गओ पणमित्ता महापसाओ त्ति तं गहिअं॥ ४८१॥ तुण्णागस्सुवणीयं दसिया कज्जंमि तेण सो भणिओ। भमसु जिण-मग्गओ तं खंधाउ पडिस्सइ तमद्धं ।। ४८२ ।। न य घिप्पइ सो भयवं निस्संगो तो तुमं तमाणिज्जा । दो वि अहं तुण्णेउं अद्धे सयलं करिस्सामि ।। ४८३ ॥ दीणार-सय-सहस्सं लहिही तं विक्कयंमि तो तुब्भं । मज्झं च अद्धमद्धं होही भणिओ इय गओ सो॥ ४८४ ॥ वच्चंतस्स य पडियं खंधाउ सुवण्ण-वालुया-पुलिणे। वत्थं कंटिए लग्गं चित्तूण य सो दिओ चलिओ॥४८५ ।। मंदाइणीइ-पुलिणे चक्कंकुस-लंछिए पए दटुं। तित्थंगरस्स पासे पत्तो सामुद्दिओ पुरिसो॥ ४८६ ॥ निस्संगं भगवंतं अवलोएउं विसाय-संपत्तो। जा निय-चित्ते झुरइ दढीकओ ता सुरिंदेण ॥ ४८७॥ धम्मवर चक्कवट्टी ससुरनर-नमंसिओ भयवं। पाय-रओ वि हु एयस्स पहरए गुरुय-दारिदं ।। ४८६॥

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