Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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१२]
ब्राह्मणग्रंथोल्लेखः
[कल्पान्तर्वाच्यः वंजणं मस तिलगाइ नेयं सत्थाणुसारओ। पुरिसाण दाहिणो भव्वा इत्थीणं वामगा सया॥१३५॥ इति लक्षणाधिकारः ।। जल-दोण-मद्धभारं समुहाओ समुस्सियो य जो नवओ। माणुम्माण-पमाणं तिविहं खलु लक्खणं णेयं ॥ १३६॥ अट्ठसयं छण्णवइ चउरासीइ होइ परिमाणं। अंगुलीयाण भणियं उत्तम-सम-हीण-मणुयाणं ।।१३७॥ तित्थयर-देह-माणं आयंगुल-वीसहिय-मेगसयं। जम्हा अंगुल-बारस मज्झे अचुण्णयं सीसं ॥ १३८॥
से वि अ णं दारए उम्मुक्क-बालभावे विण्णाय-परिणय-मित्ते जोव्वणग-मणुप्पत्ते रिउव्वेअ-जउव्वेअ सामवेअ अथव्वणवेअ-इतिहास-पंचमाणं निग्घंट्र-छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेआणं सारए वारए पारए धारए सडंगवी, सद्वितंत-विसारए संखाणे सिक्खाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अण्णेसु अ बहुसु बंभण्णएसु परिव्वायएसु नएसु सुपरिणिट्ठिए आवि भविस्सइ ।। सूत्र ६॥
बंभंभोरुह विण्ह३, वाय भागवय नारयं६ णेयं । मक्कंड मग्गिदेवय-बम-विवत्ताभिह° भविस्सं ॥१३६॥ लिंग२ वराह'३ खंधं वामण५ मच्छ १६कुम्म १७गरुडभिहाणं। पुराणं अट्ठारसमं वियाणाहि ॥१४०॥ इंदं च पाणिणीयं जिणिदं सागडायणं च तहा। वामणधेयं चंदं तह बुद्धिसागरं भणियं ।। १४१ ।। तह सरस्सइ कंठाभरणं भीमसेणयं । केलापगं च विस्संत-विजाहर मेव च ॥१४२॥ मुट्ठी-वागरणं गोडं सिवं नंदिजयोवलं। सारस्सयं सिद्धहेमं जयहेमं तहावरं ।। १४३॥
[तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वजपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासणे दाहिणड्ड-लोगाहिवई एरावण-वाहणे सुरिंदे बत्तीसविमाण-सयसहस्साहिवई अरयंबर-वत्थधरे आलइअ-माल-मउडे नव

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