Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 38
________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] त्रिशला [२६ सयणाओ साव-सीलो अंजणाओ बालओ हवइ अंधो। अइरोदणा कुदिट्ठी अइसिणाणाओ दुह-सीलो।।३१०॥ अइ-तेलब्भंगाओ कुट्ठी कुनही नहावकत्तणओ। अइधावणाओ चवलो अइकहणाओ पलावी य॥३११॥ सामुट्ठ-दंत-तालु-जीहो दसणाओ जायए बालो। अइसद्दसवण-बहिरो इय सुच्चा वजए सव्वं ।। ३१२॥ नाइसीएहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं नाइनिद्धेहिं नाइलुक्खेहिं नाइउल्लेहिं नाइसुक्केहिं, सव्वत्तुगभयमाण-सुहेहिं भोयणाच्छायण-गंधमल्लेहिं, ववगय-रोग-सोग-मोह-भय-परिस्समा जं तस्स गब्भस्स दिअं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे अ काले अ आहारमाहारेमाणी, विवित्त-मउएहिं सयणासणेहिं पइरिक्कसुहाए मणोणुकूलाए विहारभूमीए, पसत्थ-दोहला, संपुण्ण-दोहला, सम्माणिय-दोहला, अविमाणियदोहला, वुच्छिण्ण-दोहला, ववणीय-दोहला सुहं सुहेणं आसइ, सयइ, चिट्ठइ, निसीयइ, तुयट्टइ, विहरइ, सुहं सुहेणं तं गब्भं परिवहइ ॥ सूत्र ६५॥ वायाहारेहि भवे वामण जड कुब्बडंधओ बालो। अइपित्ताहारेहिं चित्ती पंगू य पंडु-कफो। ३१३॥ अइलवणं नित्त-हरं अइसीयं मारुयप्पगोवाय। अच्चुण्णं हरइ बलं अइकामं जीवियं हरइ ॥ ३१४ ॥ वासासु लवणममियं सरइ जलं गोपयं च हेमंते। सिसिरे चामलग-रसो घयं वसंते गुडो अंते॥३१५॥ मंदं संचर मंदमेव निगय वा मुंच कोवक्कमं । पत्थं भुंज बहाण णीविमणया मा माट्टहासं कुरु। आगासे भव मा कुसेज्ज-सयणे नीयं बही गच्छ मा। देवी गब्भ-भरालसा नियसही-वग्गेण सा सिस्सए । ३१६ ।। शार्दूलविक्रीडितम् तिहिं नाणेहिं समग्गो देवी-तिसलाइ सो य कुच्छंसि । अह वसइ सण्णि गब्भो छम्मासे अद्ध-मासं च ॥३१७॥

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