Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 45
________________ ३६ ] आमलकी-क्रीडा तं दण पलाणा भयभीया कीलमाणया कुमरा -- सव्वे वि ठिओ वीरो फणिणा वि कओ फणाडोवो ॥ ३६० ॥ सो घित्तूण करेणं उल्लालेऊण घल्लिओ दूरं । भय-रहिएण जिणेण लहु मिलिया ते पुणो डिंभा ॥ ३६१ ॥ चिंतइ सुरो न भीओ इच्छंता अण्णहा पुणो भेसे । इत्थंतरंमि वीरो तिंदुसय - कीलणं कुणइ ॥ ३६२॥ तेहिं कुमरेहिं समं सो वि सुरो डिंभ - रूवयं काउं । कीलइ वीरेण समं जिओ य सो भगवया तत्थ ॥ ३६३ ॥ तप्पट्ठीए वीरो आरूढो तस्स वाहण - निमित्तं । एसो वि य तत्थ पणो जियस्स जं पिट्ठियारुहणं ॥ ३६४ ॥ सो वहिउं पवत्तो वेयालागार - धारओ रुद्दो । सत्त-तल-माण- देहो संजाओ भेसणट्ठाए । ३६५ ॥ जिण-नाहेण वि पहओ पुट्ठिए वज्र - कढिण- मुट्ठीए । सो आराडिं काउं भयेण ससगुव्व संकुडिओ ॥ ३६६ ॥ पायडियामर - रूवो रंजिय-हियओ य पणमइ जिणंदं । भइ तुहं परमेसर धीरतं तारिसं चेव ॥ ३६७॥ जारिसयं सुरवइणा सुर-मज्झे वण्णियं ति ता खमसु । मज्झ तुमं भेसविओ परिक्खणत्थं जमेवं ति ॥ ३६८ ॥ भुजो भुजो खामिय पणमिय वीरं गओ स सोहम्मं । भयवं पि गिहे चिट्ठइ विसिट्ठ-कीला - विणोएणं ॥ ३६६ ॥ [ कल्पान्तर्वाच्यः बालत्तणे वि सूरो पयइए गुरु-परक्कमो भयवं । वीरु त्ति कयं नामं सक्केण तुट्ठ- चित्तेणं ॥ ४०० ॥ ( इत्यामलकी - क्रीडा...) अह तं अम्मा- पियरो जाणित्ता अहिय- अट्ठ-वासं ति । कय- कोउ अलंकारं लेहायरिस्स उणिति ॥। ४०१ ॥ इत्थंतरंमि सक्कस्स आसणं चलइ तो वियाणित्ता । तं वइयरं सुरिंदो वयइ समक्खं सुराणं पि ॥ ४०२ ॥ अंबे वण्णरमालया सुमहुरी गारो सुहाए य सो, बंभी-पाढण-संव्विही सुइ-गुणारोवो ' ससंगे जहा । १. १शाके=चन्द्रे ।

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