Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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कल्पान्तर्वाच्यः ]
नामकरणम् एवं सूरस्स वि हु मुत्तिं सुवण्णमइं च तंबमइं। नवरं मंतो एवं ॐ अरहं सूरिओसित्ति ।। ३७८ ॥ दिणयरोसि तह तमोपहोसि तह चेव सहसकिरणोसि । जयचक्खूरसि पसीद य आसीवायं गुरू देइ ।। ३७६ ॥ नवरं हि सुयग भया जाणेयव्वा य पुत्तजयमाया। ठाविय मुत्तिविसज्जणमवि कायव्वं तहेव ति॥३८०॥
समणे भगवं महावीरे कासव-गुत्तेणं, तस्स णं तओ नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा-अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे सहसंमुइयाए समणे, अयले भयभेरवाणं परीसहोवसग्गाणं खंतिखमे, पडिमाणं पालए, धीमं, अरइ-रइ-सहे, दविए, वीरियसंपण्णे, देवेहिं से नामं कयं “समणे भगवं महावीरे"।।१०८।।
अह वड्डइ सो भयवं दियलोयचुओ अणोवम-सिरिओ। दासी-दास-परिवुडो परिकिण्णो पीढमद्देहिं ।। ३८१॥ जाईसरो य भयवं अप्परिवडिएहिं तीहिं नाणेहिं। कंतीहि य बुद्धीहि य अब्भहिओ तेहिं मणुएहिं ॥ ३८२॥ अह ऊण-अट्ठ-वासो भयवं कीलइ सुराण मज्झंमि । आमलिया-खिल्लेणं लोय-पसिद्धेण-पुर-बाहिं ॥ ३८३ ॥ तत्थ य खिड्डय-रुक्खं आरुहियव्वं तु खिल्लयनरेहिं। इत्थंतरे य सक्को सोहम्म-सहाइ-उवविठ्ठो ॥३८४॥ संत-गुणा-कित्तणयं करेइ वीरस्स अमर-मज्झंमि। धीरत्त-गुण-वियारे परगुणगहणंमि तल्लिच्छो ॥३८५॥ बालो अबालभावो अबालपरक्कमो महावीरो। न उ सक्का भेसेउं देवेहिं सइंदएहिं पि॥३८६॥ तं वयणं सोऊणं मिच्छदिट्ठी य अह सुरो एगो। चिंतइ माणुस-मित्तं तत्थ वि सिसु-भावमावण्णं ॥३८७॥ देवेहिं वि नो तीरइ भेसेउं सद्दहामि नो एयं। ता गंतुं भेसेमि इय चिंतिय आगओ तत्थ ।। ३८८॥ कीलइ जत्थ जिणंदो कीलण-रुक्खं वेढइ समंता। कज्जल-वण्णं काउं फणि-रूवं दीहरं भीमं ।। ३८६॥

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