Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

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Page 35
________________ स्वप्रफलम् [ कल्पान्तर्वाच्यः सिज्जा दारग्गला-भंगे भजाए मच्चु जायए। अंग-च्छेए पुणो दिढे पिय-माय-सुयव्वए॥२७८ ॥ दहि-लाहे भवे अत्थो घय-लाहे भवे जसो। घय-पाणे भवे केसो जसो हु दहिभक्खणे ।। २७६ ।। जो हि सेएण सप्पेण डस्सए दाहिणे भुये। सहस्स लाहो भवे तस्स संपत्ते दसमे दिणे ।।२८०॥ वडवं कुक्कडिं कोचिं लद्धणं पडिबुज्झइ।। लब्भ कोसजुत्तं स भज्जं मधुर-भासिणिं ।। २८१॥ आसणे सयणे जाणे सरीरे वाहणे गिहे। जलमाणे जो उ जग्गिज्जा लच्छी तस्स[स] सम्मुही ॥२८२ ।। असोगं कणवीरं च पलासं वा वि पुफियं । दलु सामलि-रुक्खं वा सोगं सो लब्भ धणं ।। २८३॥ एला-लवंग-वल्ली कप्पूर-फलाणि नागवल्लिं च। जाइफलं च पस्सइ खायइ जो तस्स भवइ सिरी ॥२८४ ॥ अंतेहिं वेढए जो गामं वा नगराणि वा। गामे मण्डल-रज्जं च नगरे पत्थिवो भवे ॥२८५ ॥ आरूढो सुब्भ-गयं नई-तडे सालि-भोयणं कुणइ। सो भुंजइ भूमिमखिलं सहाय-हीणो वि धम्मधणो॥२८६॥ देवयारिसयो गावो पियणो लिंगिणो निवा। नरं वयंति जं सुत्ते तं तहेव भविस्सइ ॥२८७॥ सव्वाणि सुक्काणि सुसोहणाणि कप्पास-भस्स-त्थि-कवाल-वजं । सव्वाणि कण्हाणि अइनिंदियाणि गोह-च्छि-वाजि-द्विज-देव-वजं ॥२८॥ दुस्सुमिणे देव-गुरू पूयइ पगरेइ सत्तिओ य तवं । सययं धम्म-रयाणं दुस्सुविणो हवइ सुस्सुमिणो॥२८६ ॥ इत्थी वा पुरिसो वा सुविणंते एगं महंतं खीरकुंभं वा दहिकुंभं घयकुंभं वा महुकुंभं वा.

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