Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ [२५ कल्पान्तर्वाच्यः ] . स्वप्रफलम् पढमप्पहरे दिट्ठो सुमिणो संवच्छरेण देइ फलं । बिय-पहरे छम्मासे ततीय-पहरे ति-मासेणं ।। २६३ ॥ तुरिए पहरे दिट्ठो मासेणं फलइ सो पुणो सुमिणो। .. चरम-निसा घडिया दुय दिट्ठो दसमेण दिवसेणं ।। २६४ ॥ सूरोदये य दिट्ठो सिग्धं फल-दायगो भवे सुमिणो। नस्सावो दुस्सुमिणो इयरो सावो गुरुजणस्स ॥२६५॥ जुग्गस्सावाभावे गो-कण्णे पविसिऊण तं पि वए। गो-वसह-कुंजराणं पासाय-गिरिग्ग-सुतरूणं ।। २६६॥ आरोहणं पसत्थं रुइयं विट्ठाणुलेव मह-मरणं। गमणागमणं भव्वं सुमिणे दिटुं समक्खायं ।। २६७॥ अन्नं दीवं पउमं कन्न-छत्तं तहावरं हारं । झयमाभरणाइयं इट्ठ-सिद्धिं पयासेइ ॥२६॥ जो पासइ सुविणंते निवई कुंजरं हयं। सुवण्णं वसहं गावं कुडुंबं तस्स वट्टइ।।२६६॥ जीहा-छए सिर-च्छेए हंति सामज-संपया। लिंग-च्छेएण सोहग्गं मच्चू कण्णाइ छेयओ ।। २७०॥ . माणुसाणि य मंसाणि सुविणंते जो य भक्खए। हरियाणि य पक्काणि सुणू तस्साऽवि जं फलं ।। २७२ ।। पाए पंच-सई लाहो सहस्सं बाहु-भक्खणे। रज्जं सय-सहस्सं वा लब्भइ मुंड-भक्खणे ।। २७३ ॥ केसा जस्स विसीयंति दंता जस्स पडंति य। धण-नासो भवे तस्स पीडा वा वि सरीरजा ।। २७४ ॥ उवद्दवंति जं सुत्तं सिंगिणो दाढिणोपि वा। वानरो वा वराहो वा भवे राय-कुला भयं ।। २७५ ॥ छदि मुत्तं विट्ठ सुक्कं रुहिरं सुरं पिये पस्से। तेणाणुलिंपइ जो धण-विजा वट्टए तस्स ।। २७६ ॥ गिहगोधिगा भुजंगा सयपदिगा कीडिगा फुडं जस्स। पविसंति कण्ण-मज्झे स विणस्सइ कण्ण-रोगेणं ।। २७७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132