Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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२४ ]
स्वप्रलक्षणपाठकाः
[ कल्पान्तर्वाच्यः मंगल-पायच्छित्ता, सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवराइं परिहिआ, अप्पमहग्घाभरणालंकिय-सरीरा, सिद्धत्थय-हरियालिया-कय-मंगल-मुद्धाणा, सएहिं सएहिं गेहेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नगरं मझं मज्झेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रण्णो भवण-वर-वडिंसग-पडिदुवारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवण-वर-वडिंसग-पडिदुवारे एगयओ मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव अंजलिं कट्टु सिद्धत्थं खत्तियं जएणं विजएणं वद्धाविंति।। सूत्र ६७॥
मंति-परिक्खियसिज्जा पत्त बीडप्पणेण पंचसया। सुहडा अणायगा जह अबद्धा हीलणं पत्ता ।। २५७॥ जत्थ सव्वेवि रायाणो सव्वे पंडियमाणिणो। सव्वे महत्तमिच्छंति तं वंदम विसीयइ ।। २५८ ॥ ते पंडिया न एवं गच्छंति सम्मया पुणो जंति। राय-सहाए तो ते पुजा जाया नरिंदस्स ।। २५६ ॥
तए णं ते सुमिण-लक्खण-पाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स अंतिए एअमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव हियया ते सुमिणे सम्मं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता ईहं अणुपविसंति, अणुपविसित्ता अण्णमण्णेण सद्धिं संचालेंति, संचालित्ता तेसिं सुमिणाणं लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा अहिगयट्ठा सिद्धत्थस्स रण्णो पुरओ सुमिणसत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी ॥ सूत्र ७२॥
भूवालेणं उत्ता तेसिं मझे य वुड्डओ वाई। सामी! सुविण-फलं सुणु सावहाणो भवित्ता णं ॥२६०॥ नव कारणाणि सुमिणे सुयं अणुभूयं पदिट्ठ-मणुरुवं । चिंता पगइ-वियारो देवा पुण्णाणि पावाणि ।। २६१ ।। पढमं छक्कं अहलं सुहमसुहं अंतियं तियं सहलं । पुरिसाणं तं सुयइ सुहासुहं सिग्घमेव पुणो।। २६२ ॥

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