Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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१०] लक्षणाधिकारः
[ कल्पान्तर्वाच्यः [उराला णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा कल्लाणा सिवा धण्णा मंगल्ला सस्सिरीआ आरुग्ग-तुट्ठि-दीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारगा णं तुमे देवाणुप्पिए! सुमिणा दिट्ठा तं जहा–अत्थलाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो देवाणुप्पिए! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए! सुक्खलाभो देवाणुप्पिए! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए ! नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणं राइंदिआणं विइक्कंताणं सुकुमाल-पाणि-पायं अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदिय-सरीरं लक्खण-वंजण-गुणोववेअं माणुम्माण-पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय सव्वंग-सुंदरंगं ससि-सोमाकारं कंतं पिअदसणं सुरूवं देवकुमारोवमं दारयं पयाहिसि ।। सूत्र-८॥]
जो भवइ सत्त-रत्तो छगुन्नओ पंचसुहम दीहो य। ति विउल-लहुगंभीरो बत्तीस सुलक्खणो पुरिसो ।। ११३ ।। नह-चरण-पाणि-जीहा दसण(च्छ) 'छय-तालु-लोयणं तेसु। सत्तसु सिया जु रत्तो सत्तंगं सो लहइ लच्छिं ।। ११४ ।। कक्खा-वच्छं नासा किगाडिगा मुह-नहा य उन्नया जस्स । उन्नइ य तस्स भवइ दिणे दिणे वड्डमाणा य॥ ११५ ।। दंत-तया-केसंगुलि-पव्व-नहा जस्स हुंति अइसुहमा। धण-लच्छी पमुहाणि वडंति सया घरे तस्स ।। ११६॥ नयण थणंतर नासा हणु-भुजमिइ पंचगं हवइ दीहं। ..... दीहाऊ वित्तपरो परक्कमी जायए स नरो॥११७॥ भाल-मुरो-वयणमिइ ति-तयं भूमीसरस्स विच्छिण्णं । गीवा जंघा मेहणमिइ ति-तयं लहु पुणो तस्स ।।११८॥ नाही सरो य सत्तं गंभीरं होइ जस्स पुरिसस्स। निस्सेस भूमी-रमणी-करग्गहं सो नरो कुणइ ॥११६॥
अहवा
छत्तं तामरसं धणू रहवरो दंभोलि कुम्म कुसा वावी सत्थिय तोरणाणि य सरो पंचाणणो पायवो। चक्कं संख गया समुद्द कलसो पासाय मच्छा जवा जूवं थूभ कमंडलू खिइधरो सच्चामरो दप्पणो। १२०॥ १. हीठ.
शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ।
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