Book Title: Kalpantarvcahya
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Sharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
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कल्पान्तर्वाच्यः ] कर्चिकश्रेष्ठी
[ १३ हेम-चारु-चित्त-चंचल-कुण्डल-विलिहिज्जमाण-गल्ले महिड्डिए महजुइए महाबले महायसे महाणुभावे महासुक्खे भासुरबुंदी पलंब-वणमालधरे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए, से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणवास-सयसाहस्सीणं चउरासीए सामाणिअ साहस्सीणं तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणीआणं सत्तण्हं अणीआहिवईणं चउण्हं चउरासीए आयरक्ख-देव-साहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं सोहम्म-कप्प-वासीणं वेमाणिआणं देवाणं देवीण य, आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्टगीअ-वाइअ-तंती-तलताल-तुडिअ-घणमुइंग-पडुपडह-वाइअ-रवेणं दिव्वाणं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ॥ बारसा सूत्र-१३॥]
दठूण अण्ण-तित्थिय पराहवं भव-भयाओ निविण्णो। नेगम अट्ठसहस्सेणं परिवुडो कत्तिओ सेट्ठी ॥ १४४ ।। पव्वइओ मुणिसुव्वय सामि-सगासंमि बारसंगधरो। बारस-सम-परियाओ सोहम्मे सुरवरो जाओ।। १४५॥ पुढवीभूसणे पुव्वं पयापालो निवोजणि। सेट्ठी सो कत्तिओ तत्थ राजमन्नो महड्डिओ॥१४६ ।। तेण सद्धावया साद्धपडिमाणं सयं कयं। सयकेउत्ति विक्खाओ जाओ लोए य सुपसिद्धो॥१४७॥ मासोववास-कारी गेरिग-नामेण तावसो एगो। निव-पमुहो सयल-जणो तं वंदइ कत्तियं च विणा ।। १४८ ॥ नाऊण वइयरं सो निमंतमाणो न मन्नइ रण्णा। जइ मं भुंजावेइ तुह सिट्ठी कत्तिओ नाम ।। १४६॥ पडिवज्जिऊण राया सिद्धिं सम्माणिऊण भणइ तयं । तह पुरवास-निमित्ता जं काहिसि तं करिस्सामि ।। १५०॥ इय वत्तुं पत्तो सो रायगिहे तस्स खीरमाइयं । जा परिवेसइ बालो अंगुलिए तज्जणं कुणइ ॥१५१ ॥ धिक्कारं चिंतंतो रायाणं पुच्छिऊण निक्खंतो। नेगम अट्ठसहस्सेणं जाओ सयकेऊ इंदो सो॥१५२॥

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