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ध्यान करने वाला व्यक्ति अपने प्रति बहुत जाग जाता हैं। अपने प्रति बहुत जागना खतरनाक नहीं हैं। दूसरे के प्रति बहुत जागना खतरनाक हैं। आज दुनियां में जितने बड़े खतरे हैं, उनको उन्हीं लोगों ने पैदा किया है, जो खुद को नहीं जानते, केवल दूसरों को जानने में ही लगे रहते हैं।
ध्या
न की साधना ज्योति की साधना है, प्रकाश की साधना है । मनुष्य प्रकाश चाहता है । वह कभी अंधकार नहीं चाहता । इसलिए वह प्रकाश की साधना करता है । वह चाहता है कि भीतर का तमस भाग जाए। अंधकार मिट जाए। जीवन में प्रकाश जैसे-जैसे उभरता जाता है, वैसे-वैसे अंधकार भाग जाता है। जीवन में प्रकाश होना भी संभव है और अंधकार होना भी संभव है। दोनों संभव है, इसलिए संभव है कि विश्व का सार्वभौम नियम है परिवर्तन । जैसे अपरिवर्तन एक शाश्वत नियम है, वैसे ही परिवर्तन भी शाश्वत नियम है ।
द्रव्य और पर्याय
अनेकांत ने तत्त्व की व्याख्या की । तत्त्व के दो पहलू हैं। एक है द्रव्य और दूसरा है पर्याय । द्रव्य मूल में होता है और पर्याय ऊपर होता है। परिवर्तन
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