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जो सहता है, वही रहता है
मनुष्यों को किस प्रकार बाँटा गया है, उनका वर्गीकरण किस तरह किया गया है ?
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आयुर्वेद के अनुसार तीन प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक । जिसका मन सत्वगुण प्रधान होता है, वह सात्विक व्यक्ति होता है । जिसका मन रजोगुण प्रधान होता है, वह राजसिक व्यक्तित्व होता है और जिसका मन तमोगुण प्रधान होता है, वह तामसिक व्यक्तित्व होता है।
मनोदशा
क्या जो सात्विक है, वह सात्विक ही रहता है ? जो राजसिक है, वह राजसिक ही रहता है, जो तामसिक है, वह तामसिक रहता है ? यह नहीं कहा जा सकता कि एक व्यक्ति सदा सात्विक ही रहता है, राजसिक या तामसिक ही रहता है । जीवन के प्रातः काल में जिस व्यक्ति को बहुत सात्विक देखा, जीवन के उत्तरार्द्ध में वह राजसिक बन जाता है और जीवन की संध्या में वही व्यक्ति तामसिक भी बन जाता है। जिस व्यक्ति को जीवन के पूर्वार्द्ध में तामसिक देखा, वह जीवन के उत्तरार्द्ध में सात्विक बन जाता है। यह परिवर्तन होता रहता है । इसलिए चोर कभी साहूकार बन जाता है और साहूकार कभी चोर बन जाता है। डाकू संत बन जाता है और संत डाकू बन जाता है । मनोदशा के आधार पर यह सारा परिवर्तन होता है। प्रश्न है, जब यह परिवर्तन होता रहता है, तो किसी व्यक्ति के सात्विक बनने का हेतु क्या है ? हम किसी व्यक्ति को क्यों सात्विक कहें ? सूक्ष्मता से चिंतन किया गया तो पता चला कि इसका भी एक कारण है। एक ही दिन में आदमी तीन प्रकार की अवस्थाओं को भोग लेता है। किसे सात्विक माना जाए ? किसे राजसिक और तामसिक माना जाए ? इसका बहुत अच्छा समाधान दिया गया। जिस व्यक्ति में जिस तत्त्व की बहुलता होती है, उसके आधार पर उसका नाम बन जाता है। जिस व्यक्ति में सत्वगुण की प्रधानता होती है, उसे सात्विक, जिस व्यक्ति में रजोगुण की बहुलता होती है, उसे राजसिक और जिसमें तमोगुण की बहुलता होती है, उसे तामसिक कहा जाता है। केवल प्रधानता के आधार पर यह नामकरण हुआ है।
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