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जो सहता है, वही रहता है
अधिक समय तक रह नहीं पाता, क्योंकि उसमें प्रमाद है। यह भूमिका बदलती रहती है । मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए प्रमाद की भूमिका से बाहर आना आवश्यक होता है । अप्रमत्त भूमिका मानसिक दृष्टि से पूर्ण स्वास्थ्य की भूमिका है। वीतराग की भूमिका पूर्ण अप्रमत्त अवस्था की भूमिका है। शेष अल्पकालिक अप्रमत्त अवस्था की भूमिकाएँ हैं। बिना वीतराग की भूमिका के किसी को पूर्ण स्वस्थ कह पाना कठिन होता है। मुनि को भी पूर्ण स्वस्थ नहीं कहा जा सकता । उसके मन में समय-समय पर जाने कितने मानस दोष आ जाते हैं ! मुनि कभी लोभ में, कभी क्रोध में, कभी अहंकार में चले जाते हैं । ये विकल्प आते रहते हैं। जब मुनि की यह स्थिति है तो एक गृहस्थ के बारे में क्या कहा जा सकता है ?
स्वर्णिम सूत्र
तुम चाहते हो - सब मुझ पर विश्वास करें। पहले देखो - तुम अपने पर कितना विश्वास करते हो ।
• दूसरा मेरे बारे में क्या सोचता है सोचो, इससे तनाव बढ़ेगा। यह सोचो बारे में क्या सोचता हूं ।
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ऐसा मत
मैं अपने
क्या अभ्यास के बिना साध्य सध सकता है ? संभव नहीं, इसलिए अभ्यास पर ध्यान केन्द्रित हो ।
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★ विजय कैसे प्राप्त होती है ? इस पर चिंतन चले तो व्यक्ति कभी पराजित नहीं होता। विजय के लिए आवश्यक है - संकल्प शक्ति का विकास।
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